BALRAMPUR: जनजातीय गौरव माह पर एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का हुआ आयोजन…………..जनजातीय समाज के गौरवशाली अतीत पर विद्वानों ने किया मंथन

बलरामपुर के शासकीय महाविद्यालय और नवीन शासकीय महाविद्यालय, रनहत के संयुक्त तत्वावधान में जनजातीय समाज के गौरवशाली अतीत, ऐतिहासिक, सामाजिक एवं आध्यात्मिक योगदान पर एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। चार सत्रों में आयोजित इस संगोष्ठी में जनजातीय समाज के ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व को रेखांकित किया गया।
संगोष्ठी का उद्घाटन और मुख्य अतिथि का संबोधन
संगोष्ठी का शुभारंभ अटल बिहारी वाजपेयी विश्वविद्यालय, बिलासपुर के कुलपति प्रो. अरुण दिवाकरनाथ बाजपेयी ने दीप प्रज्ज्वलन कर किया। उन्होंने जनजातीय समाज को प्रकृति का संरक्षक बताते हुए उनकी न्याय पद्धति, जीवनशैली एवं संस्कृति की सराहना की। अपने वक्तव्य में प्रो. बाजपेयी ने स्वतंत्रता संग्राम में जनजातीय नायकों जैसे बिरसा मुंडा, वीर नारायण सिंह, और रानी दुर्गावती के योगदान पर प्रकाश डाला, विशेष रूप से रानी दुर्गावती की युद्ध नीति की तुलना कारगिल युद्ध से करते हुए जनजातीय समाज के अद्वितीय योगदान की सराहना की।
पहला सत्र: जनजातीय समाज का ऐतिहासिक योगदान
पहले सत्र में शासकीय महाविद्यालय बलरामपुर के प्राचार्य श्री एन. के. देवांगन और प्रो. एन. के. सिंह ने जनजातीय समाज के ऐतिहासिक योगदान को उजागर किया। संत गहिरा गुरु विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ. शारदा प्रसाद त्रिपाठी ने तिलका मांझी जैसे अनजाने जनजातीय नायकों का उल्लेख किया, जो इतिहास में प्रमुख रूप से दर्ज नहीं हैं।
दूसरा सत्र: जनजातीय भाषा, संस्कृति और स्वतंत्रता संग्राम में योगदान
गुरु घासीदास केंद्रीय विश्वविद्यालय के डॉ. के. एन. सिंह ने दूसरे सत्र की अध्यक्षता की और जनजातीय भाषा, संस्कृति एवं उनके स्वतंत्रता संग्राम में योगदान को प्रस्तुत किया। डॉ. चन्द्रशेखर सिंह और डॉ. पुनीत कुमार राय ने छत्तीसगढ़ के जनजातीय विद्रोह एवं भारतीय ज्ञान परंपरा पर विचार साझा किए। मगध विश्वविद्यालय, बोधगया के डॉ. सचिन कुमार मंडिलवार ने संथाल विद्रोह और कोल आंदोलन जैसे जनजातीय आंदोलनों पर प्रकाश डाला।
तीसरा सत्र: शोध पत्र प्रस्तुति
तीसरे सत्र में 23 शोधार्थियों ने अपने शोध पत्र प्रस्तुत किए, जिसमें शासकीय महाविद्यालय बलरामपुर के सहायक प्राध्यापक श्री ओम शरण शर्मा ने संचालन किया। शोधार्थियों ने अपने शोध के माध्यम से जनजातीय समाज के इतिहास और सांस्कृतिक योगदान को समझने और प्रस्तुत करने का प्रयास किया।
अंतिम सत्र: जनजातीय समाज का सांस्कृतिक और आध्यात्मिक योगदान
अंतिम सत्र का संचालन शासकीय नवीन महाविद्यालय चांदनी बिहारपुर के प्राचार्य श्री जीतन राम पैंकरा ने किया। उन्होंने जनजातीय समाज के इतिहास, कला, संस्कृति और आध्यात्मिक योगदान पर चर्चा की। इस अवसर पर मुख्य कार्यपालन अधिकारी जनपद पंचायत बलरामपुर श्री रणबीर साय ने जनजातीय संस्कृति के विकासक्रम पर व्याख्यान दिया, जबकि डॉ. यू. के. पाण्डेय और डॉ. पीयूष कुमार टांडे ने जनजातीय समाज के दर्शन और मूल्य पर अपने विचार रखे।
समापन और संगोष्ठी का निष्कर्ष
संगोष्ठी का समापन शासकीय नवीन महाविद्यालय लखनपुर के प्राचार्य डॉ. डी. पी. साहू के प्रतिवेदन वाचन से हुआ। संगोष्ठी में देशभर के विद्वान और शोधार्थियों के साथ विभिन्न महाविद्यालयों के छात्र-छात्राएं, अधिकारी-कर्मचारी उपस्थित रहे। इस आयोजन ने जनजातीय समाज की महानता और उनके अद्वितीय योगदान की गहनता से सराहना की, और समाज में उनके योगदान को उजागर करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।