September 20, 2024 11:55 am

Vikata Sankashti Chaturthi 2024: आज है विकट संकष्टी चतुर्थी? इस दिन क्यों पढ़ते हैं गणेश कवच? जानें क्या है गणेश कवच एवं इसका महात्म्य!

हिंदू पंचांग में प्रत्येक माह दो चतुर्थी (कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष) और साल में लगभग 24 चतुर्थियां पड़ती हैं. वैशाख माह शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विकट संकष्टी चतुर्थी कहते हैं. अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस वर्ष 27 अप्रैल 2024, शनिवार को विकट चतुर्थी मनाई जाएगी. मान्यता है कि इस दिन विधिवत पूजा-पाठ करने से धन, बुद्धि और विद्या की प्राप्ति होती है, इसके साथ ही इस दिन श्री गणेश कवच का पाठ अवश्य करना चाहिए, क्योंकि यह स्तोत्र गणपति जी को बहुत प्रिय है. ज्योतिषाचार्य श्री संजय शुक्ल के अनुसार विकट चतुर्थी के दिन गणेश जी की पूजा के दरमियान गणेश कवच का पाठ करने का सबसे अच्छा दिन होता है, इसलिए इस दिन गणेश कवच का पाठ हर जातक को अवश्य करना चाहिए.

गणेश कवच का महत्व एवं लाभ?

श्रीगणेश कवच भगवान गणेश को प्रसन्न करने का एक सरल और अत्यंत प्रभावशाली तरीका है. इस कवच का पाठ करने से भगवान गणेश की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त होता है, जीवन में सभी प्रकार की बाधाओं और नकारात्मक शक्तियों से मुक्ति मिलती है. साध्य असाध्य रोगों की पीड़ा से राहत मिलती है. शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है. तथा मन को शांति प्राप्त होती है. बांझन औरत को संतान प्राप्ति और दाम्पत्य जीवन में चल रहे रहे विवाद मिटते हैं, एवं दरिद्रता दूर होती है. 

क्या है गणेश कवच?

श्री गणेश कवच एक शक्तिशाली स्तोत्र है, जो भगवान गणेश की स्तुति में लिखा गया है. इसका पाठ करने से भक्तों को अनेक लाभ प्राप्त होते हैं. कवच गणेश भगवान के विभिन्न नामों, मंत्रों, और श्लोकों का संग्रह होता है, जो उनकी कृपा को प्राप्त करने और उनके आशीर्वाद को पाने में मदद करता है. इस कवच को प्रतिदिन या विशेष अवसरों पर पाठ किया जाता है.

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विकट संकष्टी चतुर्थी 2024 मुहूर्त

वैशाख कृष्ण पक्ष चतुर्थी प्रारंभः 08.17 AM (27 अप्रैल 2024)

वैशाख कृष्ण पक्ष चतुर्थी समाप्तः 08.21 AM (28 अप्रैल 2024)

चंद्र पूजा पर आधारित होने के कारण विकट संकष्टी चतुर्थी 27 अप्रैल 2024 को मनाई जाएगी.

पूजा समयः सुबह 07.22 AM से 09.01 AM

रात्रि मुहूर्त – शाम 06.54 PM से 08.15 AM

चंद्रोदय समय – रात 10.23 PM

श्री गणेश कवच

धर्मार्थकाममोक्षेषुविनियोग: प्रकीर्तित:।

सर्वेषांकवचानांच सारभूतमिदं मुने।।

ॐ गंहुंश्रीगणेशाय स्वाहा मेपातुमस्तकम्।

द्वात्रिंशदक्षरो मन्त्रो ललाटं मेसदावतु।।

ॐ ह्रीं क्लीं श्रीं गमिति च संततंपातुलोचनम्।

तालुकं पातुविध्नेशःसंततंधरणीतले।।

ॐ ह्रीं श्रीं क्लीमिति च संततंपातुनासिकाम्।

ॐ गौं गंशूर्पकर्णाय स्वाहा पात्वधरंमम।।

दन्तानि तालुकांजिह्वांपातुमेषोडशाक्षर:।।

ॐ लंश्रीं लम्बोदरायेति स्वाहा गण्डं सदावतु।

ॐ क्लीं ह्रीं विघन्नाशाय स्वाहा कर्णसदावतु।।

ॐ श्रीं गंगजाननायेति स्वाहा स्कन्धंसदावतु।

ॐ ह्रीं विनायकायेति स्वाहा पृष्ठं सदावतु।।

ॐ क्लीं ह्रीमिति कङ्कालंपातुवक्ष:स्थलंच गम्।

करौ पादौ सदा पातुसर्वाङ्गंविघन्निघन्कृत्।।

प्राच्यांलम्बोदर: पातुआगन्य्यांविघन्नायक:।

दक्षिणेपातुविध्नेशो नैर्ऋत्यांतुगजानन:।।

पश्चिमेपार्वतीपुत्रो वायव्यांशंकरात्मज:।

कृष्णस्यांशश्चोत्तरेच परिपूर्णतमस्य च।।

ऐशान्यामेकदन्तश्च हेरम्ब: पातुचोर्ध्वत:।

अधो गणाधिप: पातुसर्वपूज्यश्च सर्वत:।।

स्वप्नेजागरणेचैव पातुमांयोगिनांगुरु:।।

इति तेकथितंवत्स सर्वमन्त्रौघविग्रहम्।

संसारमोहनंनाम कवचंपरमाद्भुतद्भुम्।।

श्रीकृष्णेन पुरा दत्तंगोलोके रासमण्डले।

वृन्दावनेविनीताय मह्यंदिनकरात्मज:।।

मया दत्तंच तुभ्यंच यस्मैकस्मैन दास्यसि।

परंवरंसर्वपूज्यंसर्वसङ्कटतारणम्।।

गुरुमभ्यर्च्य विधिवत्कवचंधारयेत्तुय:।

कण्ठे वा दक्षिणेबाहौ सोऽपि विष्णुर्नसंशय:।।

अश्वमेधसहस्त्राणि वाजपेयशतानि च।

ग्रहेन्द्रकवचस्यास्य कलांनार्हन्ति षोडशीम्।।

इदं कवचमज्ञात्वा यो भजेच्छंकरात्मजम्।

शतलक्षप्रजप्तोऽपि न मन्त्र: सिद्धिदायक:।।


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