PANCHANG: 09 सितंबर 2023 का पंचांग: हनुमान जी की तरह भगवान शिव ने भी धारण किया है पंचमुखी स्वरूप, जानिए रहस्य………..पंचांग पढ़कर करें दिन की शुरुआत

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प्रातःकाल पञ्चाङ्ग का दर्शन, अध्ययन व मनन आवश्यक है। शुभ व अशुभ समय का ज्ञान भी इसी से होता है।

आज श्रावण माह कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि है। आज आद्रा नक्षत्र है।  चंद्रमा मिथुन राशि में मौजूद रहेंगे। आज शनिवार है।

आज राहुकाल 08:49 से 10:22 तक ​ है। इस दौरान किसी शुभ काम को करने से परहेज करें।

आज का पंचांग (अंबिकापुर)

दिनांक09 सितंबर 2023
माहश्रावण
तिथिदशमी
पक्षकृष्ण
दिवसशनिवार
नक्षत्रआद्रा
करणवणिज
सूर्योदय05:42:50
सूर्यास्त18:06:05
सूर्य राशिसिंह
चन्द्र राशिमिथुन

मुहूर्त (अंबिकापुर)

शुभ मुहूर्त- अभिजीत11:30 से 12:19 तक
राहु काल08:49 से 10:22 तक

भगवान शिव सभी देवताओं में सबसे उच्च स्थान रखते हैं तभी उन्हें महादेव की उपाधि दी जाती है। भगवान शिव के रूद्रावतार के बारे में तो आपने सुना होगा लेकिन शायद ही आपने शिव जी के पंचमुखी अवतार के बारे में सुना हो। जी हां हनुमान जी की तरह ही भगवान शिव का भी पंचमुखी अवतार है जिसका वर्णन चार वेदों में से एक यजुर्वेद में मिलता है।

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भगवान शिव के पांच मुख में अघोर, सद्योजात, तत्पुरुष, वामदेव और ईशान शामिल हैं। इसलिए उन्हें पंचानन या पंचमुखी भी कहा जाता है। शिवजी के इन सभी मुख में तीन नेत्र भी हैं। इसी प्रकार शंकर जी के 11वें रुद्रावतार हनुमान जी के भी पांच मुख हैं। भगवान शिव का ही अवतार होने के कारण शिवजी की शक्ति भी हनुमान जी के पंचमुखी स्वरूप में समाई हुई हैं।

भगवान शिव के पंचानन रूप की कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार भगवान विष्णु ने अत्यंत मनोहर किशोर रूप धारण किया। उनके इस मनमोहक रूप को देखने के लिए चतुरानन ब्रह्मा, बहुमुख वाले अनंत आदि सभी देवतागण प्रकट हुए। उन सभी ने अपने अनेक मुखों से भगवान के इस रूप माधुर्य का आनंद लिया और प्रशंसा भी की। ये देख शिवजी सोचने लगे कि यदि मेरे भी अनेक मुख और नेत्र होंते तो मैं भी भगवान के इस किशोर रूप का सबसे अधिक दर्शन करता जिससे मुझे भी अधिक आनंद का सौभाग्य प्राप्त होता।

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शिवजी के मन में यह इच्छा जागृत हुई और उन्होंने पंचमुखी रूप ले लिया। तभी से उन्हें पंचानन के नाम से भी जाना जाता है। भगवान शिव के पंखमुखी रूप को लेकर शिवपुराण में भी वर्णन मिलता है जिसमें भगवान शिव कहते हैं कि सृष्टि, पालन, संहार, तिरोभाव और अनुग्रह ये पांच कृत्य या कार्य मेरे ही पांच मुखों द्वारा धारित हैं।

शिवजी के पंचमुख का महत्व

कहा जाता है कि भगवान शिव के पांच मुख में चार मुख चारों दिशाओं में और एक मध्य में है। भगवान शिव के पश्चिम दिशा का मुख सद्योजात बालक के समान स्वच्छ, शुद्ध व निर्विकार हैं। उत्तर दिशा का मुख वामदेव अर्थात विकारों का नाश करने वाला। दक्षिण मुख अघोर अर्थात निन्दित कर्म करने वाला। निन्दित कर्म करने वाला भी शिव की कृपा से निन्दित कर्म को शुद्ध बना लेता हैं। वहीं, शिव के पूर्व मुख का नाम तत्पुरुष अर्थात अपने आत्मा में स्थित रहना। ऊर्ध्व मुख का नाम ईशान अर्थात जगत का स्वामी है।

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