PANCHANG: 31 अक्टूबर 2024 का पंचांग………दीपावली आज……….पंचांग पढ़कर करें दिन की शुरुआत

पंचांग का दर्शन, अध्ययन व मनन आवश्यक है। शुभ व अशुभ समय का ज्ञान भी इसी से होता है। अभिजीत मुहूर्त का समय सबसे बेहतर होता है। इस शुभ समय में कोई भी कार्य प्रारंभ कर सकते हैं। हिंदू पंचांग को वैदिक पंचांग के नाम से जाना जाता है। पंचांग के माध्यम से समय और काल की सटीक गणना की जाती है।

पंचांग मुख्य रूप से पांच अंगों से मिलकर बना होता है। ये पांच अंग तिथि, नक्षत्र, वार, योग और करण है। यहां हम दैनिक पंचांग में आपको शुभ मुहूर्त, राहुकाल, सूर्योदय और सूर्यास्त का समय, तिथि, करण, नक्षत्र, सूर्य और चंद्र ग्रह की स्थिति, हिंदूमास और पक्ष आदि की जानकारी देते हैं।

आज कार्तिक माह कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी है दोपहर 15:52 के बाद अमावस्या लग जाएगी । आज चित्रा नक्षत्र है। आज गुरुवार है। आज राहुकाल 13:05 से 14:29 तक हैं। इस समय कोई भी शुभ कार्य करने से परहेज करें।

आज का पंचांग (अंबिकापुर)

दिनांक31 अक्टूबर 2024
दिवसगुरुवार
माहकार्तिक
पक्षकृष्ण
तिथिचतुर्दशी, दोपहर 15:52 के बाद अमावस्या
सूर्योदय06:02:29
सूर्यास्त17:18:50
करणशकुनी
नक्षत्रचित्रा
सूर्य राशितुला
चन्द्र राशिकन्या

मुहूर्त (अंबिकापुर)

शुभ मुहूर्त- अभिजित 11:18 से 12:03 तक
राहुकाल 13:05 से 14:29 तक

भारत में दीपावली का पर्व न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से भी एक अहम स्थान रखता है। दीपावली या दिवाली का त्योहार हिंदू धर्म में प्रमुख रूप से मनाया जाने वाला त्योहार है, जिसे देशभर में बड़े उत्साह और धूमधाम से मनाया जाता है। यह पर्व पांच दिनों का होता है, जिसमें हर दिन का अपना एक विशेष महत्व और अनुष्ठान होता है। दीपावली का मुख्य दिन अमावस्या की रात को होता है, जिस पर लक्ष्मी-गणेश का पूजन कर घर-परिवार में सुख-समृद्धि की कामना की जाती है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन मां लक्ष्मी पृथ्वी लोक में भ्रमण करती हैं, और जिन घरों में साफ-सफाई, श्रद्धा से पूजा-पाठ और दीयों की रोशनी होती है, वहां निवास करती हैं। इस वर्ष दिवाली का पर्व आज 31 अक्तूबर को मनाया जा रहा है, और इसी दिन लक्ष्मी पूजन का शुभ मुहूर्त रहेगा।

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दीपावली का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व

दीपावली का इतिहास और सांस्कृतिक संदर्भ कई मान्यताओं से जुड़ा हुआ है। प्रमुख रूप से यह त्योहार भगवान श्रीराम के अयोध्या लौटने की स्मृति में मनाया जाता है। त्रेतायुग में जब भगवान राम 14 वर्षों के वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे, तो वहां के नागरिकों ने उनके स्वागत में नगर को दीयों से सजाया था। इसके अलावा, इस दिन भगवान विष्णु ने देवी लक्ष्मी का वरण किया था। महाभारत के समय में, पांच पांडवों के 12 वर्षों के वनवास और एक वर्ष के अज्ञातवास के बाद वापस लौटने के उपलक्ष्य में भी दीपावली का आयोजन हुआ था।

दीपावली का त्योहार सिर्फ अयोध्या तक सीमित नहीं रहा, बल्कि कालांतर में पूरे देश में मनाया जाने लगा। यह पर्व संपूर्ण भारत में ‘अंधकार पर प्रकाश की विजय’ के रूप में मनाया जाता है। भारत के अलावा, नेपाल, श्रीलंका, म्यांमार, और फिजी जैसे कई देशों में भी इसे बड़े उल्लास से मनाया जाता है, जहां प्रवासी भारतीय समाज इसे अपनी संस्कृति के प्रतीक के रूप में संजोए हुए हैं।

दिवाली पूजन विधि का महत्व

दीपावली के दिन घर-घर में महालक्ष्मी पूजन का विशेष महत्व है। कार्तिक माह की अमावस्या की रात को मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है ताकि उनके आशीर्वाद से घर में धन-धान्य, सुख-समृद्धि का वास हो। मान्यता है कि प्रदोष काल में लक्ष्मी पूजन करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है, क्योंकि इस समय में देवी लक्ष्मी का पृथ्वी पर आगमन होता है।

लक्ष्मी पूजन का शुभ मुहूर्त और महत्व

हर वर्ष की तरह इस बार भी दीपावली का त्योहार कार्तिक मास की अमावस्या तिथि पर मनाया जा रहा है। 2024 में कार्तिक माह की अमावस्या तिथि 31 अक्तूबर को दोपहर 3:52 बजे से शुरू होगी और 1 नवंबर की शाम 6:16 बजे समाप्त होगी। इस बार लक्ष्मी पूजन का शुभ मुहूर्त 31 अक्तूबर की शाम 5:36 बजे से लेकर रात 8:51 बजे तक रहेगा। वृषभ लग्न में लक्ष्मी पूजन का समय शाम 6:25 बजे से रात 8:20 बजे तक विशेष रूप से शुभ और फलदायी माना गया है।

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प्रदोष काल के दौरान पूजा करना विशेष रूप से लाभकारी माना जाता है, क्योंकि इस समय सूर्यास्त के बाद की अवधि होती है, जो अंधकार के बीच रोशनी फैलाने का प्रतीक बनती है। स्थिर लग्न में लक्ष्मी पूजन का मुहूर्त अधिक महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि यह समय स्थिरता और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।

दीपावली पूजन की सामग्री और विधि

दीपावली की पूजा विधि बहुत ही सरल है, लेकिन इसमें श्रद्धा और पूर्ण विधि-विधान का विशेष महत्व होता है। पूजन के लिए मुख्य सामग्रियों में मिट्टी के दीये, कुमकुम, चावल, दीपक, गंगाजल, पुष्प, फल, मिठाई, नारियल, धूप, और अगरबत्ती शामिल हैं। पूजा स्थल की पूर्व में अच्छी तरह सफाई कर लें और उसके बाद गंगाजल का छिड़काव करें। एक स्वच्छ लाल कपड़ा बिछाकर माता लक्ष्मी, भगवान गणेश, और अन्य देवी-देवताओं की प्रतिमाएं या चित्र स्थापित करें। लक्ष्मी पूजन के लिए उत्तर दिशा या ईशान कोण सबसे शुभ माना गया है। स्वास्तिक का निर्माण करें और फिर माता लक्ष्मी और गणेश जी का आह्वान करें।

पूजा में गणेश जी की आराधना से आरंभ करें क्योंकि बिना गणेश पूजन के कोई भी शुभ कार्य अधूरा माना जाता है। इसके बाद देवी लक्ष्मी का ध्यान करते हुए उनकी पूजा करें। दीप, धूप, पुष्प, और नैवेद्य अर्पित करें। पूजा स्थल पर नौ दीपक रखें और सभी देवी-देवताओं की आरती करें। इस आरती के बाद घर के हर हिस्से में दीप जलाकर रोशनी करें, जिससे चारों ओर सकारात्मक ऊर्जा और समृद्धि का संचार हो।

दीपावली पर विशेष उपाय और उनके लाभ

दीपावली पर विशेष उपायों को अपनाने से जीवन में सुख-समृद्धि, धन-धान्य और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। मान्यता है कि दीयों से सजावट करने और रंगोली बनाने से घर में सुख-शांति और समृद्धि का आगमन होता है। घर के मुख्य द्वार पर रंगोली बनाकर और मंगल चिह्न लगाकर मां लक्ष्मी को आमंत्रित किया जाता है। इसके अलावा, व्यापार में उन्नति के लिए दुकानों और प्रतिष्ठानों में विशेष रूप से लक्ष्मी पूजन किया जाता है।

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दिवाली के पांच दिन: धनतेरस से भाई दूज तक

दीपावली का त्योहार केवल एक दिन का नहीं होता, बल्कि यह पांच दिनों तक चलता है, जिसमें हर दिन का अपना विशेष महत्व है। दीपावली की शुरुआत धनतेरस से होती है, जिस दिन नया सामान, विशेषकर सोने-चांदी के आभूषण या बर्तन खरीदना शुभ माना जाता है। इसके बाद नरक चतुर्दशी आती है, जिसे छोटी दिवाली भी कहते हैं। इसके अगले दिन अमावस्या को मुख्य दिवाली मनाई जाती है, जिसमें लक्ष्मी-गणेश पूजन होता है। इसके बाद गोवर्धन पूजा और अन्नकूट का आयोजन होता है। पांचवें दिन भाई दूज का पर्व आता है, जो भाई-बहन के पवित्र रिश्ते को समर्पित है।

दीपावली का सामाजिक और पर्यावरणीय प्रभाव

आज के समय में जहां हर कोई दीपावली को खुशियों और उत्सव के रूप में देखता है, वहीं इसे पर्यावरण की दृष्टि से सुरक्षित और स्वच्छ बनाना भी आवश्यक है। पटाखों के प्रयोग से होने वाले प्रदूषण को ध्यान में रखते हुए, अब लोग अधिक से अधिक दीयों और रोशनी से अपने घरों को सजाने की ओर प्रवृत्त हो रहे हैं। यह न केवल पर्यावरण के अनुकूल है, बल्कि सांस्कृतिक धरोहर को भी सजीव रखता है। दीयों की रोशनी और घरों की सजावट से दीपावली का त्योहार असली रूप में मनाया जा सकता है।

निष्कर्ष

दीपावली का पर्व एक ऐसा अवसर है, जो हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने का संदेश देता है। यह त्योहार हमारे जीवन में नई ऊर्जा, आशा, और समृद्धि का संचार करता है। इस दिन देवी लक्ष्मी की पूजा और दीपों का प्रकाश जीवन में खुशहाली और उन्नति का प्रतीक बनता है। दीपावली हमें सामाजिक, सांस्कृतिक, और आध्यात्मिक रूप से जोड़ने वाला पर्व है, जो हर वर्ष परिवार और समाज को एक सूत्र में बांधता है। इस वर्ष आज 31 अक्तूबर को दिवाली मनाते समय इन परंपराओं का पालन कर हम इसे और भी आनंदमय और फलदायी बना सकते हैं।

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