PANCHANG: 28 अक्टूबर 2024 का पंचांग………इन पांच दिनों के प्रकाश का पर्व दिवाली कल से होगा शुरू……….पंचांग पढ़कर करें दिन की शुरुआत
पंचांग का दर्शन, अध्ययन व मनन आवश्यक है। शुभ व अशुभ समय का ज्ञान भी इसी से होता है। अभिजीत मुहूर्त का समय सबसे बेहतर होता है। इस शुभ समय में कोई भी कार्य प्रारंभ कर सकते हैं। हिंदू पंचांग को वैदिक पंचांग के नाम से जाना जाता है। पंचांग के माध्यम से समय और काल की सटीक गणना की जाती है।
पंचांग मुख्य रूप से पांच अंगों से मिलकर बना होता है। ये पांच अंग तिथि, नक्षत्र, वार, योग और करण है। यहां हम दैनिक पंचांग में आपको शुभ मुहूर्त, राहुकाल, सूर्योदय और सूर्यास्त का समय, तिथि, करण, नक्षत्र, सूर्य और चंद्र ग्रह की स्थिति, हिंदूमास और पक्ष आदि की जानकारी देते हैं।
आज कार्तिक माह कृष्ण पक्ष की एकादशी है सुबह 07:50 के बाद द्वादशी लग जाएगी । आज पूर्व फाल्गुनी नक्षत्र है। आज सोमवार है। आज राहुकाल 07:26 से 08:51 तक हैं। इस समय कोई भी शुभ कार्य करने से परहेज करें।
आज का पंचांग (अंबिकापुर)
दिनांक | 28 अक्टूबर 2024 |
दिवस | सोमवार |
माह | कार्तिक |
पक्ष | कृष्ण |
तिथि | एकादशी, सुबह 07:50 के बाद द्वादशी |
सूर्योदय | 06:01:25 |
सूर्यास्त | 17:20:08 |
करण | बालव, सुबह 07:50 के बाद कौलव |
नक्षत्र | पूर्व फाल्गुनी |
सूर्य राशि | तुला |
चन्द्र राशि | सिंह |
मुहूर्त (अंबिकापुर)
शुभ मुहूर्त- अभिजित | 11:18 से 12:03 तक |
राहुकाल | 07:26 से 08:51 तक |
भारत में अनेक पर्वों और त्योहारों की धूम होती है, लेकिन दिवाली का एक विशेष स्थान है। इसे “प्रकाश का पर्व” कहा जाता है। हर साल, कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाने वाला यह पर्व, न केवल हमारे घरों में बल्कि दिलों में भी प्रकाश भर देता है। इस वर्ष दिवाली कल से शुरू हो रही है, और इसके उत्सव की रौनक चारों ओर बिखरती नज़र आ रही है।
दिवाली का ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व
दिवाली का इतिहास और महत्व बहुत पुराना है। यह त्योहार मुख्य रूप से भगवान राम की अयोध्या वापसी से जुड़ा हुआ है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब भगवान राम 14 वर्षों का वनवास और रावण पर विजय प्राप्त करके लौटे, तब अयोध्यावासियों ने उनके स्वागत में दीप जलाए और पूरे नगर को सजाया। तभी से यह पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत, अंधकार पर प्रकाश की विजय का प्रतीक माना जाता है।
इसके अलावा, कई अन्य पौराणिक घटनाएं भी दिवाली से जुड़ी हैं। कहा जाता है कि इस दिन माता लक्ष्मी का जन्म हुआ था और इसी दिन समुद्र मंथन के दौरान अमृत प्राप्त हुआ था। जैन धर्म में इसे भगवान महावीर के मोक्ष प्राप्ति दिवस के रूप में भी माना जाता है, जबकि सिख धर्म में इसे गुरु हरगोबिंद सिंह जी की जेल से मुक्ति के उपलक्ष्य में मनाया जाता है।
पांच दिवसीय उत्सव की परंपरा
दिवाली का उत्सव पांच दिनों तक चलता है और हर दिन का अपना एक विशेष महत्व है।
1. धनतेरस
धनतेरस से दिवाली की शुरुआत होती है। इस दिन देवी लक्ष्मी और धन के देवता कुबेर की पूजा की जाती है। लोग नए बर्तन, आभूषण और अन्य वस्त्र खरीदते हैं, जो समृद्धि का प्रतीक माने जाते हैं।
2. नरक चतुर्दशी (छोटी दिवाली)
इस दिन भगवान कृष्ण ने नरकासुर का वध किया था, जिससे बुराई पर अच्छाई की विजय का संदेश मिलता है। इसे छोटी दिवाली भी कहा जाता है। इस दिन घरों की सफाई की जाती है और दीयों की शुरुआत होती है।
3. मुख्य दिवाली
दिवाली का मुख्य दिन लक्ष्मी पूजन का होता है। लोग शाम को लक्ष्मी जी की पूजा करते हैं और उनसे घर में सुख, समृद्धि और धन की प्रार्थना करते हैं। इस दिन घर-घर में दीप जलाए जाते हैं और आतिशबाजी की जाती है।
4. गोवर्धन पूजा (अन्नकूट)
गोवर्धन पूजा भगवान कृष्ण के गोवर्धन पर्वत को उठाकर ब्रजवासियों की रक्षा करने की घटना को समर्पित है। इस दिन लोग गोवर्धन की पूजा करते हैं और अन्नकूट पर्व मनाते हैं।
5. भाई दूज
भाई दूज भाई-बहन के पवित्र प्रेम को समर्पित है। इस दिन बहनें अपने भाइयों के लंबी उम्र और सुख की कामना करती हैं और भाई उन्हें उपहार देते हैं।
घरों और समाज की सजावट
दिवाली के पहले ही घरों की साफ-सफाई की जाती है। इसे एक पवित्रता और स्वच्छता का प्रतीक माना जाता है। घर के हर कोने को दीपों से सजाया जाता है। रंगोली बनाना, फूलों और तोरणों से घर सजाना एक परंपरा है। विशेषकर इस दिन बाजारों में रौनक देखने लायक होती है। लोग नए कपड़े पहनते हैं, मिठाइयाँ बाँटते हैं और एक-दूसरे को शुभकामनाएँ देते हैं।
आतिशबाजी और दिवाली का पर्यावरण प्रभाव
दिवाली के दौरान आतिशबाजी का प्रचलन बहुत पुराना है, लेकिन इससे होने वाला प्रदूषण आज चिंता का विषय बन गया है। आतिशबाजी से वायु और ध्वनि प्रदूषण होता है, जो पर्यावरण और स्वास्थ्य दोनों के लिए हानिकारक है। इसके कारण कई स्थानों पर ‘ग्रीन दिवाली’ मनाने की पहल की जा रही है, जहाँ कम से कम पटाखे जलाए जाते हैं और अधिकतर दीप और अन्य पर्यावरण-अनुकूल तरीकों से त्योहार का आनंद लिया जाता है।
आर्थिक और सामाजिक महत्व
दिवाली का त्योहार आर्थिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। इस समय व्यापारियों के लिए सबसे ज्यादा बिक्री होती है, क्योंकि लोग घरों की सजावट के लिए और नई वस्त्र-आभूषणों के लिए खरीदारी करते हैं। इसी समय लोग विभिन्न प्रकार के उपहार और मिठाइयाँ भी खरीदते हैं। इससे बाजार में रौनक बढ़ जाती है और छोटे-बड़े व्यापारी, दुकानदार और कारीगरों को लाभ मिलता है।
दिवाली पर आस्था और सांस्कृतिक मिलन
दिवाली केवल हिन्दू धर्म का पर्व नहीं है; इसे कई धर्मों के लोग अपने-अपने तरीकों से मनाते हैं। चाहे वह लक्ष्मी पूजन हो या गोवर्धन पूजा, हर धर्म और संप्रदाय के लोग इसे मनाने के लिए एकजुट होते हैं। यह पर्व हमें आपसी भाईचारे और सामंजस्य का संदेश देता है। हर व्यक्ति, चाहे वह किसी भी जाति या धर्म का हो, अपने घर में दीप जलाता है और अपने परिवेश को प्रकाश से भरता है।
आधुनिक युग में दिवाली
आज के दौर में दिवाली का रूप बदल गया है। तकनीकी प्रगति के चलते अब LED लाइट्स और अन्य आधुनिक सजावटी चीज़ों का प्रचलन बढ़ गया है। लोग अब डिजिटल तरीकों से भी दिवाली की बधाई देते हैं। कुछ लोग गिफ्ट की जगह ‘डिजिटल वाउचर’ भेजते हैं। हालांकि, इसके बावजूद भी इस पर्व की पुरानी परंपराएं, जैसे दीप जलाना, रंगोली बनाना और लक्ष्मी पूजा करना, अभी भी लोकप्रिय हैं।
दिवाली का वास्तविक संदेश
दिवाली का असली उद्देश्य हमारे भीतर की नकारात्मकता को दूर करके हमें अच्छाई और सकारात्मकता की ओर अग्रसर करना है। यह त्योहार हमें यह याद दिलाता है कि हमें अपने भीतर के अंधकार को दूर कर समाज में अच्छाई और प्रकाश का प्रसार करना चाहिए। दीप जलाना सिर्फ बाहरी प्रकाश नहीं है, बल्कि यह हमारे भीतर की ज्ञान रूपी ज्योति को भी प्रज्वलित करता है।
निष्कर्ष
दिवाली का पर्व, चाहे वो किसी भी रूप में मनाया जाए, सदैव आनंद और खुशियों का प्रतीक रहा है। यह त्योहार केवल एक दिन का उत्सव नहीं है बल्कि एक ऐसा समय है जो हमें परिवार, मित्रों और समाज के साथ जुड़ने का मौका देता है।