PANCHANG: 26 नवंबर 2024 का पंचांग………आज है उत्पन्ना एकादशी…………पंचांग पढ़कर करें दिन की शुरुआत

पंचांग का दर्शन, अध्ययन व मनन आवश्यक है। शुभ व अशुभ समय का ज्ञान भी इसी से होता है। अभिजीत मुहूर्त का समय सबसे बेहतर होता है। इस शुभ समय में कोई भी कार्य प्रारंभ कर सकते हैं। हिंदू पंचांग को वैदिक पंचांग के नाम से जाना जाता है। पंचांग के माध्यम से समय और काल की सटीक गणना की जाती है।
पंचांग मुख्य रूप से पांच अंगों से मिलकर बना होता है। ये पांच अंग तिथि, नक्षत्र, वार, योग और करण है। यहां हम दैनिक पंचांग में आपको शुभ मुहूर्त, राहुकाल, सूर्योदय और सूर्यास्त का समय, तिथि, करण, नक्षत्र, सूर्य और चंद्र ग्रह की स्थिति, हिंदूमास और पक्ष आदि की जानकारी देते हैं।
आज मार्गशीर्ष माह कृष्ण पक्ष की एकादशी है। आज हस्त नक्षत्र है। आज मंगलवार है। आज राहुकाल 14:27 से 15:48 तक हैं। इस समय कोई भी शुभ कार्य करने से परहेज करें।
आज का पंचांग (अंबिकापुर)
दिनांक | 26 नवंबर 2024 |
दिवस | मंगलवार |
माह | मार्गशीर्ष |
पक्ष | कृष्ण |
तिथि | एकादशी |
सूर्योदय | 06:19:39 |
सूर्यास्त | 17:09:30 |
करण | बव |
नक्षत्र | हस्त |
सूर्य राशि | वृश्चिक |
चन्द्र राशि | कन्या |
मुहूर्त (अंबिकापुर)
शुभ मुहूर्त- अभिजित | 11:23 से 12:06 तक |
राहुकाल | 14:27 से 15:48 तक |
हिंदू धर्म में उत्पन्ना एकादशी का विशेष महत्व है। यह मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को आती है। इस वर्ष यह एकादशी 25 नवंबर, सोमवार की रात 01:02 बजे शुरू होकर आज 26 नवंबर, मंगलवार की रात 03:47 बजे समाप्त होगी। चूंकि 26 नवंबर को एकादशी तिथि सूर्योदय के समय विद्यमान रहेगी, इसलिए व्रत इसी दिन रखा जाएगा।
उत्पन्ना एकादशी का महत्व
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, उत्पन्ना एकादशी का संबंध भगवान विष्णु की महाशक्ति मां एकादशी के प्राकट्य से है। विष्णु और पद्म पुराण के अनुसार, इस दिन व्रत रखने से एक हजार अश्वमेध यज्ञ और सौ राजसूय यज्ञ के बराबर पुण्य की प्राप्ति होती है। यह व्रत पापों का नाश करने वाला और मोक्ष प्रदान करने वाला माना गया है।
नारद पुराण में वर्णित है कि इस दिन व्रत करने से व्यक्ति को भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है और वह अपने जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का अनुभव करता है। व्रत करने वाले भक्त मृत्यु के बाद भगवान विष्णु के दिव्य लोक में स्थान प्राप्त करते हैं।
पूजा विधि
उत्पन्ना एकादशी व्रत दशमी तिथि की रात्रि से ही आरंभ हो जाता है।
- दशमी तिथि की तैयारी: इस दिन सात्विक भोजन ग्रहण करें और मन को शुद्ध रखें।
- प्रातःकाल पूजा: एकादशी के दिन सुबह स्नान कर भगवान विष्णु के समक्ष व्रत का संकल्प लें। पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध करें।
- भगवान विष्णु की पूजा: भगवान विष्णु को पीले वस्त्र, चंदन, तुलसी दल, अक्षत, पीले फूल और फल अर्पित करें।
- मंत्र जाप: “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जाप करें और विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें।
- व्रत पालन: दिनभर निराहार या फलाहार व्रत रखें और रात्रि में जागरण कर भजन-कीर्तन करें।
- व्रत पारण: द्वादशी तिथि को ब्राह्मणों को भोजन कराकर, दान-दक्षिणा देकर व्रत का पारण करें।
पौराणिक कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, दैत्यराज मुर ने देवताओं को परास्त कर स्वर्ग पर कब्जा कर लिया था। देवताओं ने भगवान विष्णु से सहायता की प्रार्थना की। मुरासुर अत्यंत बलशाली था, और भगवान विष्णु ने उससे युद्ध किया। विश्राम के लिए हिमालय की एक गुफा में गए भगवान विष्णु पर जब मुरासुर ने हमला किया, तब उनकी शक्ति से एक दिव्य कन्या प्रकट हुई।
उस कन्या ने मुरासुर का वध किया। भगवान विष्णु ने प्रसन्न होकर उसे “एकादशी” नाम दिया और कहा कि इस तिथि पर व्रत करने वाले भक्तों को सभी पापों से मुक्ति और मोक्ष की प्राप्ति होगी। तभी से एकादशी व्रत का प्रचलन शुरू हुआ।
आध्यात्मिक लाभ और धार्मिक आस्था
उत्पन्ना एकादशी व्रत व्यक्ति को आध्यात्मिक शांति और भगवान विष्णु की कृपा प्रदान करता है। यह जीवन में सकारात्मकता लाने, पापों का नाश करने और मोक्ष प्राप्त करने का सर्वोत्तम साधन माना जाता है। भक्तजनों के लिए यह दिन विशेष रूप से उपवास और भगवान विष्णु की आराधना में बिताने का है।
ध्यान दें: व्रत और पूजा विधि का पालन श्रद्धा और नियमपूर्वक करें, ताकि भगवान विष्णु की कृपा आप पर बनी रहे।