PANCHANG: 25 जुलाई 2024 का पंचांग……..कब है सावन का पहला प्रदोष व्रत ?……………. जानें तिथि, पूजा विधि और शुभ मुहूर्त……….पंचांग पढ़कर करें दिन की शुरुआत
पंचांग का दर्शन, अध्ययन व मनन आवश्यक है। शुभ व अशुभ समय का ज्ञान भी इसी से होता है। अभिजीत मुहूर्त का समय सबसे बेहतर होता है। इस शुभ समय में कोई भी कार्य प्रारंभ कर सकते हैं। हिंदू पंचांग को वैदिक पंचांग के नाम से जाना जाता है। पंचांग के माध्यम से समय और काल की सटीक गणना की जाती है।
पंचांग मुख्य रूप से पांच अंगों से मिलकर बना होता है। ये पांच अंग तिथि, नक्षत्र, वार, योग और करण है। यहां हम दैनिक पंचांग में आपको शुभ मुहूर्त, राहुकाल, सूर्योदय और सूर्यास्त का समय, तिथि, करण, नक्षत्र, सूर्य और चंद्र ग्रह की स्थिति, हिंदूमास और पक्ष आदि की जानकारी देते हैं।
आज श्रावण माह कृष्ण पक्ष की पंचमी है। आज पूर्वभाद्रप्रदा नक्षत्र है। आज गुरूवार है। आज राहुकाल 13:43 से 15:22 तक हैं। इस समय कोई भी शुभ कार्य करने से परहेज करें।
आज का पंचांग (अंबिकापुर)
दिनांक | 25 जुलाई 2024 |
दिवस | गुरूवार |
माह | श्रावण |
पक्ष | कृष्ण |
तिथि | पंचमी |
सूर्योदय | 05:26:08 |
सूर्यास्त | 18:41:10 |
करण | कौलव |
नक्षत्र | पूर्वभाद्रप्रदा |
सूर्य राशि | कर्क |
चन्द्र राशि | कुम्भ |
मुहूर्त (अंबिकापुर)
शुभ मुहूर्त- अभिजीत | 11:37 से 12:30 तक |
राहुकाल | 13:43 से 15:22 तक |
22 जुलाई 2024 से सावन माह की शुरुआत हो चुकी है। ये माह भोलेनाथ की पूजा अर्चना के लिए बेहद शुभ है। सावन माह को प्रेम, हरियाली और बरसात का प्रतीक माना जाता है। इस दौरान आने वाले न केवल सोमवार का महत्व है, बल्कि अन्य व्रत और तिथि को भी शिव पूजा के लिए लाभदायक माना गया है। वहीं सावन माह में प्रदोष व्रत का महत्व भी अधिक बढ़ जाता है, क्योंकि ये उपवास भगवान शिव को समर्पित है। ऐसे में सावन माह और प्रदोष व्रत के संयोग से इस तिथि की महत्ता अधिक बढ़ जाती है।
ये व्रत हर माह में दो बार आता है, पहला कृष्ण पक्ष तो दूसरा शुक्ल पक्ष में रखा जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार यदि सच्चे मन और भाव से प्रदोष व्रत रखा जाए, तो व्यक्ति को मनचाहे परिणामों की प्राप्ति होती हैं। इस उपवास में शिव-पार्वती की पूजा शाम के समय प्रदोष काल में की जाती है। इस दौरान पूजा अर्चना करने से वैवाहिक जीवन में भी सुख-समृद्धि बनी रहती है। ऐसे में आइए जान लेते हैं कि सावन का पहला प्रदोष व्रत कब रखा जाएगा।
कब है सावन का पहला प्रदोष व्रत 2024 ?
इस साल सावन का पहला प्रदोष व्रत 1 अगस्त 2024 को रखा जाएगा। वहीं अगले दिन यानी 2 अगस्त को सावन शिवरात्रि का व्रत रखा जाएगा। ऐसे में दो दिन महादेव की पूजा अर्चना को समर्पित है। इस दौरान विधिनुसार पूजा करने से जीवन में सुख-समृद्धि बनी रहती है।
त्रयोदशी तिथि
प्रारम्भ – 03:28 शाम, अगस्त 01
समाप्त – 03:26 शाम, अगस्त 02
पूजा मुहूर्त
1 अगस्त 2024 शाम 07:11 से 09:18 तक रहेगा।
प्रदोष व्रत पूजा विधि
- प्रदोष व्रत के दिन सुबह ही स्नान कर लें।
- फिर मंदिर में शिव और पार्वती की पूजा कर लें।
- इस दौरान महादेव को फूल व फल आदि चीजें अर्पित करें।
- इसके बाद शाम के समय प्रदोष काल में स्नान आदि करने के बाद मंदिर में चौकी लगाएं।
- चौकी पर शिव जी की पूरे परिवार के साथ तस्वीर स्थापित करें।
- इसके बाद आप शिव जी और गणेश जी को चंदन का तिलक लगाएं।
- इस दौरान देवी पार्वती जी को सिंदूर का तिलक लगाएं।
- फिर शिव जी को बेलपत्र और धतूरा अर्पित करने के बाद घी की दीपक जलाएं।
- इसके बाद महादेव को मिष्ठान का भोग लगाएं।
- अंत में शिव चालीसा का पाठ करें।
शिव चालीसा
॥ दोहा ॥
जय गणेश गिरिजा सुवन,
मंगल मूल सुजान ।
कहत अयोध्यादास तुम,
देहु अभय वरदान ॥
॥ चौपाई ॥
जय गिरिजा पति दीन दयाला ।
सदा करत सन्तन प्रतिपाला ॥
भाल चन्द्रमा सोहत नीके ।
कानन कुण्डल नागफनी के ॥
अंग गौर शिर गंग बहाये ।
मुण्डमाल तन क्षार लगाए ॥
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे ।
छवि को देखि नाग मन मोहे ॥
मैना मातु की हवे दुलारी ।
बाम अंग सोहत छवि न्यारी ॥
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी ।
करत सदा शत्रुन क्षयकारी ॥
नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे ।
सागर मध्य कमल हैं जैसे ॥
कार्तिक श्याम और गणराऊ ।
या छवि को कहि जात न काऊ ॥
देवन जबहीं जाय पुकारा ।
तब ही दुख प्रभु आप निवारा ॥
किया उपद्रव तारक भारी ।
देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी ॥
तुरत षडानन आप पठायउ ।
लवनिमेष महँ मारि गिरायउ ॥
आप जलंधर असुर संहारा ।
सुयश तुम्हार विदित संसारा ॥
त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई ।
सबहिं कृपा कर लीन बचाई ॥
किया तपहिं भागीरथ भारी ।
पुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी ॥
दानिन महँ तुम सम कोउ नाहीं ।
सेवक स्तुति करत सदाहीं ॥
वेद नाम महिमा तव गाई।
अकथ अनादि भेद नहिं पाई ॥
प्रकटी उदधि मंथन में ज्वाला ।
जरत सुरासुर भए विहाला ॥
कीन्ही दया तहं करी सहाई ।
नीलकण्ठ तब नाम कहाई ॥
पूजन रामचन्द्र जब कीन्हा ।
जीत के लंक विभीषण दीन्हा ॥
सहस कमल में हो रहे धारी ।
कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी ॥
एक कमल प्रभु राखेउ जोई ।
कमल नयन पूजन चहं सोई ॥
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर ।
भए प्रसन्न दिए इच्छित वर ॥
जय जय जय अनन्त अविनाशी ।
करत कृपा सब के घटवासी ॥
दुष्ट सकल नित मोहि सतावै ।
भ्रमत रहौं मोहि चैन न आवै ॥
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो ।
येहि अवसर मोहि आन उबारो ॥
लै त्रिशूल शत्रुन को मारो ।
संकट से मोहि आन उबारो ॥
मात-पिता भ्राता सब होई ।
संकट में पूछत नहिं कोई ॥
स्वामी एक है आस तुम्हारी ।
आय हरहु मम संकट भारी ॥
धन निर्धन को देत सदा हीं ।
जो कोई जांचे सो फल पाहीं ॥
अस्तुति केहि विधि करैं तुम्हारी ।
क्षमहु नाथ अब चूक हमारी ॥
शंकर हो संकट के नाशन ।
मंगल कारण विघ्न विनाशन ॥
योगी यति मुनि ध्यान लगावैं ।
शारद नारद शीश नवावैं ॥
नमो नमो जय नमः शिवाय ।
सुर ब्रह्मादिक पार न पाय ॥
जो यह पाठ करे मन लाई ।
ता पर होत है शम्भु सहाई ॥
ॠनियां जो कोई हो अधिकारी ।
पाठ करे सो पावन हारी ॥
पुत्र हीन कर इच्छा जोई ।
निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई ॥
पण्डित त्रयोदशी को लावे ।
ध्यान पूर्वक होम करावे ॥
त्रयोदशी व्रत करै हमेशा ।
ताके तन नहीं रहै कलेशा ॥
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे ।
शंकर सम्मुख पाठ सुनावे ॥
जन्म जन्म के पाप नसावे ।
अन्त धाम शिवपुर में पावे ॥
कहैं अयोध्यादास आस तुम्हारी ।
जानि सकल दुःख हरहु हमारी ॥
॥ दोहा ॥
नित्त नेम कर प्रातः ही,
पाठ करौं चालीसा ।
तुम मेरी मनोकामना,
पूर्ण करो जगदीश ॥
मगसर छठि हेमन्त ॠतु,
संवत चौसठ जान ।
अस्तुति चालीसा शिवहि,
पूर्ण कीन कल्याण ॥