PANCHANG: 22 नवंबर 2024 का पंचांग………..काल भैरव जयंती है आज……………पंचांग पढ़कर करें दिन की शुरुआत

पंचांग का दर्शन, अध्ययन व मनन आवश्यक है। शुभ व अशुभ समय का ज्ञान भी इसी से होता है। अभिजीत मुहूर्त का समय सबसे बेहतर होता है। इस शुभ समय में कोई भी कार्य प्रारंभ कर सकते हैं। हिंदू पंचांग को वैदिक पंचांग के नाम से जाना जाता है। पंचांग के माध्यम से समय और काल की सटीक गणना की जाती है।
पंचांग मुख्य रूप से पांच अंगों से मिलकर बना होता है। ये पांच अंग तिथि, नक्षत्र, वार, योग और करण है। यहां हम दैनिक पंचांग में आपको शुभ मुहूर्त, राहुकाल, सूर्योदय और सूर्यास्त का समय, तिथि, करण, नक्षत्र, सूर्य और चंद्र ग्रह की स्थिति, हिंदूमास और पक्ष आदि की जानकारी देते हैं।
आज मार्गशीर्ष माह कृष्ण पक्ष की सप्तमी है। आज आश्लेषा नक्षत्र है। आज शुक्रवार है। आज राहुकाल 10:22 से 11:43 तक हैं। इस समय कोई भी शुभ कार्य करने से परहेज करें।
आज का पंचांग (अंबिकापुर)
दिनांक | 22 नवंबर 2024 |
दिवस | शुक्रवार |
माह | मार्गशीर्ष |
पक्ष | कृष्ण |
तिथि | सप्तमी |
सूर्योदय | 06:16:54 |
सूर्यास्त | 17:09:50 |
करण | बव |
नक्षत्र | आश्लेषा |
सूर्य राशि | वृश्चिक |
चन्द्र राशि | कर्क |
मुहूर्त (अंबिकापुर)
शुभ मुहूर्त- अभिजित | 11:22 से 12:05 तक |
राहुकाल | 10:22 से 11:43 तक |
हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को काल भैरव जयंती मनाई जाती है। इस साल यह तिथि मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी से मेल खाती है, जो 22 नवंबर 2024 को शाम 6 बजकर 07 मिनट से शुरू होकर 23 नवंबर 2024 को रात 7 बजकर 56 मिनट पर समाप्त होगी। इस दिन भगवान काल भैरव की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है।
भगवान काल भैरव को “भूत संघ नायक” और पंचभूतों (पृथ्वी, अग्नि, जल, वायु, और आकाश) के स्वामी कहा गया है। उनकी उपासना से भय, पाप, और नकारात्मक शक्तियों से मुक्ति मिलती है। भगवान काल भैरव का संदेश है कि अहंकार, अधर्म, और अन्याय का नाश निश्चित है।
भगवान काल भैरव का प्राकट्य
शिवपुराण के अनुसार, भगवान काल भैरव का प्राकट्य सृष्टि में न्याय और संतुलन स्थापित करने के लिए हुआ था। एक बार त्रिदेवों (ब्रह्मा, विष्णु, और महेश) के बीच यह विवाद हुआ कि सृष्टि का सबसे महान देवता कौन है। भगवान ब्रह्मा ने अपने पांच मुखों से दावा किया कि वे सर्वोच्च हैं। उनकी बातों में अहंकार झलक रहा था।
भगवान शिव ने उन्हें अहंकार त्यागने की सलाह दी, लेकिन ब्रह्मा ने उनकी बात अनसुनी कर दी। इस अपमान से क्रोधित होकर भगवान शिव ने अपने भीतर से एक उग्र स्वरूप प्रकट किया, जिसे “काल भैरव” कहा गया।
ब्रह्मा के अहंकार का अंत
काल भैरव ने ब्रह्मा के पांचवें सिर को काट दिया, जो उनके अहंकार का प्रतीक था। इस घटना के बाद ब्रह्मा ने अपनी गलती स्वीकार की और भगवान शिव से क्षमा मांगी। हालांकि, ब्रह्मा का सिर काटने के कारण काल भैरव ब्रह्म हत्या के पाप के भागी बन गए। इस पाप के प्रायश्चित के लिए उन्होंने संपूर्ण पृथ्वी की परिक्रमा की। अंततः वे काशी पहुंचे, जहां उन्हें इस पाप से मुक्ति मिली। इसी कारण काशी को “मुक्ति स्थली” और काल भैरव को “काशी के कोतवाल” कहा जाता है।
काल भैरव की पूजा का महत्व
काल भैरव तंत्र साधना में विशेष स्थान रखते हैं। उन्हें समय, मृत्यु, और सुरक्षा के देवता माना जाता है। उनकी पूजा से भय, नकारात्मक ऊर्जा, और बुरी शक्तियों का नाश होता है।
काशी में काल भैरव की विशेष पूजा होती है। भक्त उन्हें शराब, नारियल, काले तिल, और अन्य वस्तुएं अर्पित करते हैं। यह मान्यता है कि काल भैरव की कृपा से व्यक्ति को आत्मविश्वास और साहस मिलता है। उनके भक्तों का अनिष्ट करने वालों को तीनों लोकों में शरण नहीं मिलती।
काल भैरव को “दंडपाणि” भी कहा जाता है क्योंकि उनके हाथों में त्रिशूल, तलवार, और डंडा होता है। उनकी पूजा से घर में नकारात्मक शक्तियों, जादू-टोने, और भूत-प्रेत का भय समाप्त हो जाता है।
इस काल भैरव जयंती पर भगवान की उपासना कर उनके आशीर्वाद से अपने जीवन में शांति, सुरक्षा, और समृद्धि लाएं।