PANCHANG: 18 सितम्बर 2024 का पंचांग…………आज से शुरू पितृपक्ष…………..जानें इसका महत्व……पंचांग पढ़कर करें दिन की शुरुआत

पंचांग का दर्शन, अध्ययन व मनन आवश्यक है। शुभ व अशुभ समय का ज्ञान भी इसी से होता है। अभिजीत मुहूर्त का समय सबसे बेहतर होता है। इस शुभ समय में कोई भी कार्य प्रारंभ कर सकते हैं। हिंदू पंचांग को वैदिक पंचांग के नाम से जाना जाता है। पंचांग के माध्यम से समय और काल की सटीक गणना की जाती है।

पंचांग मुख्य रूप से पांच अंगों से मिलकर बना होता है। ये पांच अंग तिथि, नक्षत्र, वार, योग और करण है। यहां हम दैनिक पंचांग में आपको शुभ मुहूर्त, राहुकाल, सूर्योदय और सूर्यास्त का समय, तिथि, करण, नक्षत्र, सूर्य और चंद्र ग्रह की स्थिति, हिंदूमास और पक्ष आदि की जानकारी देते हैं।

आज भाद्रपद माह शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा है। आज पूर्वभाद्रपदा नक्षत्र है। आज बुधवार है। आज राहुकाल 11:51 से 13:22 तक हैं। इस समय कोई भी शुभ कार्य करने से परहेज करें।

आज का पंचांग (अंबिकापुर)

दिनांक18 सितम्बर 2024
दिवसबुधवार
माहभाद्रपद
पक्षशुक्ल
तिथिपूर्णिमा
सूर्योदय05:45:49
सूर्यास्त17:56:14
करणबालव
नक्षत्रपूर्वभाद्रपदा
सूर्य राशिकन्या
चन्द्र राशिमीन

मुहूर्त (अंबिकापुर)

शुभ मुहूर्त- अभिजित आज अभिजित नहीं है।
राहुकाल 11:51 से 13:22 तक

भारतीय शास्त्रों में ऐसा माना जाता है कि पितृगण पितृपक्ष में पृथ्वी पर आते हैं और 16 दिनों तक पृथ्वी पर रहने के बाद अपने लोक लौट जाते हैं। शास्त्रों में बताया गया है कि पितृपक्ष के दौरान पितृ अपने परिजनों के आस-पास रहते हैं इसलिए इन दिनों कोई भी ऐसा काम नहीं करना चाहिए, जिससे पितृ गण नाराज हों। पितरों को खुश रखने के लिए पितृपक्ष में कुछ बातों पर विशेष ध्यान देना चाहिए। पितृपक्ष के दौरान ब्राह्मण, जामाता, भांजा, गुरु, नाती को भोजन कराना चाहिए। इससे पितृगण अत्यंत प्रसन्न होते हैं। इस दौरान कुछ बातों का खास ध्यान रखना चाहिए, जैसे कि ब्राह्मणों को भोजन करवाते समय भोजन का पात्र दोनों हाथों से पकड़कर लाना चाहिए अन्यथा भोजन का अंश राक्षस ग्रहण कर लेते हैं। ऐसे में ब्राह्मणों द्वारा अन्न ग्रहण करने के बाद भी पितृगण भोजन का अंश ग्रहण नहीं करते हैं।

इसे भी पढ़ें:  NEXT GENERATION LAUNCH VEHICLE: केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम की दिशा में उठाया एक महत्वपूर्ण कदम. ............अगली पीढ़ी का उपग्रह प्रक्षेपण यान विकसित करने की मंजूरी दी

पितृपक्ष में द्वार पर आने वाले किसी भी जीव-जंतुओं को मारना नहीं चाहिए, बल्कि उनके योग्य भोजन का प्रबंध कर उन्हें खिलाना चाहिए। हर दिन घर में भोजन बनने के बाद एक हिस्सा निकालकर गाय, कुत्ता या कौए को खिलाना चाहिए। माना जाता है कि इन्हें दिया गया भोजन सीधे पितरों को प्राप्त होता है। पितृपक्ष के दौरान शाम के समय घर के द्वार पर एक दीपक जरूर जलाएं और पितृगणों का ध्यान करें। हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार, जिस तिथि को जिसके पूर्वज गमन करते हैं, उसी तिथि को उनका श्राद्ध करना चाहिए। श्राद्ध पक्ष में पितरों को जल देने और उनकी मृत्यु तिथि पर श्राद्ध करने से व्यक्ति के समस्त मनोरथ पूर्ण होते हैं।

पितरों के श्राद्ध के लिए तिथि

जिन लोगों को अपने परिजनों की मृत्यु की तिथि ज्ञात नहीं होती, उनके लिए पितृ पक्ष में कुछ विशेष तिथियां भी निर्धारित की गई हैं, जिस दिन वे पितरों के निमित्त श्राद्ध कर सकते हैं।

आश्विन कृष्ण प्रतिपदा: इस तिथि को नाना-नानी के श्राद्ध के लिए सही बताया गया है। इस तिथि को श्राद्ध करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है। यदि नाना-नानी के परिवार में कोई श्राद्ध करने वाला न हो और उनकी मृत्यु तिथि याद न हो, तो आप इस दिन उनका श्राद्ध कर सकते हैं।

पंचमी: जिनकी मृत्यु अविवाहित स्थिति में हुई हो, उनका श्राद्ध इस तिथि को किया जाना चाहिए।

नवमी: सौभाग्यवती यानि पति के रहते ही जिनकी मृत्यु हो गई हो, उन स्त्रियों का श्राद्ध नवमी को किया जाता है। यह तिथि माता के श्राद्ध के लिए भी उत्तम मानी गई है। इसलिए इसे मातृनवमी भी कहते हैं। मान्यता है कि इस तिथि पर श्राद्ध कर्म करने से कुल की सभी दिवंगत महिलाओं का श्राद्ध हो जाता है।

इसे भी पढ़ें:  RASHIFAL: 18 सितम्बर 2024 का राशिफल.........जाने कैसा रहेगा आज का दिन.......... और किस राशि की चमकेगी किस्मत

एकादशी और द्वादशी: एकादशी में वैष्णव संन्यासी का श्राद्ध करते हैं। अर्थात् इस तिथि को उन लोगों का श्राद्ध किए जाने का विधान है, जिन्होंने संन्यास लिया हो।

चतुर्दशी: इस तिथि में शस्त्र, आत्म-हत्या, विष और दुर्घटना यानि जिनकी अकाल मृत्यु हुई हो उनका श्राद्ध किया जाता है जबकि बच्चों का श्राद्ध कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को करने के लिए कहा गया है।

सर्वपितृ मोक्ष अमावस्या: किसी कारण से पितृपक्ष की अन्य तिथियों पर पितरों का श्राद्ध करने से चूक गए हैं या पितरों की तिथि याद नहीं है, तो इस तिथि पर सभी पितरों का श्राद्ध किया जा सकता है। शास्त्र अनुसार, इस दिन श्राद्ध करने से कुल के सभी पितरों का श्राद्ध हो जाता है। यही नहीं जिनका मरने पर संस्कार नहीं हुआ हो, उनका भी अमावस्या तिथि को ही श्राद्ध करना चाहिए। बाकी तो जिनकी जो तिथि हो, श्राद्ध पक्ष में उसी तिथि पर श्राद्ध करना चाहिए। यह उचित भी है। पिंडदान करने के लिए सफेद या पीले वस्त्र ही धारण करें। जो इस प्रकार श्राद्धादि कर्म संपन्न करते हैं, वे समस्त मनोरथों को प्राप्त करते हैं और अनंत काल तक स्वर्ग का उपयोग करते हैं।

श्राद्ध सदैव दोपहर के समय ही करें। प्रातः एवं सायंकाल के समय श्राद्ध निषेध कहा गया है।

क्यों किया जाता है श्राद्ध कर्म?

हमारे धर्म-ग्रंथों में पितरों को देवताओं के समान संज्ञा दी गई है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार एक वर्ष तक प्रायः सूक्ष्म जीव को नया शरीर नहीं मिलता। मोहवश वह सूक्ष्म जीव स्वजनों व घर के आसपास घूमता रहता है। श्राद्ध कार्य के अनुष्ठान से सूक्ष्म जीव को तृप्ति मिलती है इसीलिए श्राद्ध कर्म किया जाता है। ऐसा कुछ भी नहीं है कि इस अनुष्ठान में ब्राह्मणों को जो भोजन खिलाया जाता है वही पदार्थ ज्यों का त्यों उसी आकार, वजन और परिमाण में मृतक पितरों को मिलता है। वास्तव में श्रद्धापूर्वक श्राद्ध में दिए गए भोजन का सूक्ष्म अंश परिणत होकर उसी अनुपात व मात्रा में प्राणी को मिलता है जिस योनि में वह प्राणी है।

इसे भी पढ़ें:  AMBIKAPUR: के आर टेक्निकल कॉलेज द्वारा "स्वभाव स्वच्छता-संस्कार स्वच्छता" थीम पर मनाया जा रहा है स्वच्छता ही सेवा अभियान.................छात्रों को रोज किया जा रहा जागरूक करने का प्रयास

पितृ लोक में गया हुआ प्राणी श्राद्ध में दिए हुए अन्न का स्वधा रूप में परिणत हुए को खाता है। यदि शुभ कर्म के कारण मर कर पिता देवता बन गया तो श्राद्ध में दिया हुआ अन्न उसे अमृत में परिणत होकर देवयोनि में प्राप्त होगा। गंधर्व बन गया हो तो वह अन्न अनेक भोगों के रूप में प्राप्त होता है। पशु बन जाने पर घास के रूप में परिवर्तित होकर उसे तृप्त करेगा। यदि नाग योनि मिली तो श्राद्ध का अन्न वायु के रूप में तृप्ति को प्राप्त होगा। दानव, प्रेत व यक्ष योनि मिलने पर श्राद्ध का अन्न नाना अन्न पान और भोग्य रसादि के रूप में परिणत होकर प्राणी को तृप्त करेगा।

सच्चे मन, विश्वास, श्रद्धा के साथ किए गए संकल्प की पूर्ति होने पर पितरों को आत्मिक शांति मिलती है। तभी वे हम पर आशीर्वाद रूपी अमृत की वर्षा करते हैं। श्राद्ध की संपूर्ण प्रक्रिया दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके की जाती है। इस अवसर पर तुलसी दल का प्रयोग अवश्य करना चाहिए। गया, पुष्कर, प्रयाग, हरिद्वार आदि तीर्थों में श्राद्ध करने का विशेष महत्व है। जिस दिन श्राद्ध करें उस दिन पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करें। श्राद्ध के दिन क्रोध, चिड़चिड़ापन और कलह से दूर रहें। पितरों को भोजन सामग्री देने के लिए मिट्टी के बर्तनों का प्रयोग किया जाए तो अच्छा है। केले के पत्ते या लकड़ी के बर्तन का भी प्रयोग किया जा सकता है।

‘इस लेख में निहित जानकारी को विभिन्न माध्यमों से संग्रहित कर आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।’


इस वेबसाइट पर निःशुल्क प्रकाशन के लिए ambikapurcity@gmail.com पर आप प्रेस विज्ञप्ति भेज सकते है।


क्या आपने इसे पढ़ा:

error: Content is protected !!