PANCHANG: 17 जुलाई 2024 का पंचांग……..दुर्लभ योग में देवशयनी एकादशी आज…………..पंचांग पढ़कर करें दिन की शुरुआत

पंचांग का दर्शन, अध्ययन व मनन आवश्यक है। शुभ व अशुभ समय का ज्ञान भी इसी से होता है। अभिजीत मुहूर्त का समय सबसे बेहतर होता है। इस शुभ समय में कोई भी कार्य प्रारंभ कर सकते हैं। हिंदू पंचांग को वैदिक पंचांग के नाम से जाना जाता है। पंचांग के माध्यम से समय और काल की सटीक गणना की जाती है।
पंचांग मुख्य रूप से पांच अंगों से मिलकर बना होता है। ये पांच अंग तिथि, नक्षत्र, वार, योग और करण है। यहां हम दैनिक पंचांग में आपको शुभ मुहूर्त, राहुकाल, सूर्योदय और सूर्यास्त का समय, तिथि, करण, नक्षत्र, सूर्य और चंद्र ग्रह की स्थिति, हिंदूमास और पक्ष आदि की जानकारी देते हैं।
आज आषाढ़ माह शुक्ल पक्ष की एकादशी है। आज अनुराधा नक्षत्र है। आज बुधवार है। आज राहुकाल 12:03 से 13:44 तक हैं। इस समय कोई भी शुभ कार्य करने से परहेज करें।
आज का पंचांग (अंबिकापुर)
दिनांक | 17 जुलाई 2024 |
दिवस | बुधवार |
माह | आषाढ़ |
पक्ष | शुक्ल |
तिथि | एकादशी |
सूर्योदय | 05:22:42 |
सूर्यास्त | 18:44:00 |
करण | विष्टि भद्र |
नक्षत्र | अनुराधा |
सूर्य राशि | कर्क |
चन्द्र राशि | वृश्चिक |
मुहूर्त (अंबिकापुर)
शुभ मुहूर्त- अभिजीत | आज अभिजीत नहीं है। |
राहुकाल | 12:03 से 13:44 तक |
आज देवशयनी एकादशी है। हिंदू धर्म में देवशयनी एकादशी का विशेष महत्व होता है। हिंदू पंचांग के अनुसार आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को देवशयनी एकादशी का व्रत उपवास रखा जाता है। इस देवशयनी एकादशी के साथ ही चार महीनों तक चलने वाले चातुर्मास की भी शुरुआत हो जाती है। इसमें भगवान विष्णु चार माह के लिए क्षीर सागर में योग निद्रा में चले जाते हैं। भगवान विष्णु के योग निद्रा में चले जाने के कारण सृष्टि का संचालन भगवान शिव के हाथों में आ जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार चातुर्मास के आरंभ होने पर सभी तरह के शुभ और मांगलिक कार्य चार महीनों के लिए वर्जित हो जाते हैं। इस वजह से देवशयनी एकादशी पर भगवान विष्णु की विशेष रूप से पूजा आराधना करने का विधान होता है। देवशयनी एकादशी के मौके पर आइए विस्तार से जानते हैं शुभ मुहूर्त, दुर्लभ योग, पूजा विधि और मंत्रों के बारे में।
देवशयनी एकादशी 2024 तिथि और पारण का समय
वैदिक पंचांग के अनुसार आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि की शुरुआत 16 जुलाई 2024 को रात 08 बजकर 33 मिनट से होगी और समापन 17 जुलाई 2024 रात 09 बजकर 2 मिनट पर होगा। उदयातिथि के अनुसार देवशयनी एकादशी का व्रत 17 जुलाई को रखा जाएगा। वहीं देवशयनी एकादशी के व्रत का पारण का समय 18 जुलाई को सुबह 5 बजकर 32 मिनट से लेकर 08 बजकर 17 मिनट तक रहेगा।
देवशयनी एकादशी पर दुर्लभ योग
इस वर्ष देवशयनी एकादशी पर बहुत ही शुभ औऱ दुर्लभ संयोग बना है। हिंदू पंचांग के अनुसार देवशयनी एकादशी पर अनुराधा नक्षत्र, सर्वार्थसिद्धि योग, अमृत सिद्धि योग और शुक्ल जैसे शुभ योगों का निर्माण हो रहा है।
देवशयनी एकादशी का महत्व
हिंदू पंचांग के अनुसार, हर साल आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी(हरिशयनी एकादशी) मनाई जाती है। इस दिन भगवान विष्णु चार महीने के लिए योगनिद्रा में चले जाते हैं। यह अवधि चातुर्मास के नाम से जानी जाती है, जो देवउठनी एकादशी तक चलती है।इस दौरान शुभ कार्यों को विराम दिया जाता है।देवशयनी एकादशी भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने का विशेष अवसर है। इस दिन व्रत, पूजा, मंत्र जाप, भजन-कीर्तन और दान-पुण्य जैसे उपायों से भगवान विष्णु को प्रसन्न किया जा सकता है। यह दिन आध्यात्मिक उन्नति और जीवन में सुख-शांति प्राप्त करने का महत्वपूर्ण माध्यम है। इसलिए इस दिन को पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ मनाना चाहिए।
देवशयनी एकादशी का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व बहुत अधिक है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन व्रत करने और भगवान विष्णु की पूजा करने से व्यक्ति को अक्षय पुण्यों की प्राप्ति होती है,और जीवन में सुख-समृद्धि आती है। भक्त इस दिन व्रत रखते हैं और भगवान विष्णु की विशेष पूजा-अर्चना करते हैं। इस व्रत को रखने से व्यक्ति के सभी पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
देवशयनी एकादशी पूजा विधि और उपाय
इस दिन व्रत रखने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है। व्रत रखने वाले भक्त अन्न ग्रहण नहीं करते और फलाहार या जल ग्रहण करते हैं। व्रत का पालन नियमपूर्वक और पूरी श्रद्धा से करना चाहिए। इससे व्यक्ति के पापों का नाश होता है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है। स्नान और पवित्रता-प्रात:काल जल्दी उठकर स्नान करें और पवित्र वस्त्र धारण करें।स्नान के बाद भगवान विष्णु की प्रतिमा या चित्र के सामने दीपक जलाएं और पुष्प अर्पित करें। भगवान विष्णु की प्रतिमा को पंचामृत से स्नान कराएं। इसके बाद साफ जल से धोकर उन्हें वस्त्र पहनाएं।भगवान विष्णु को तुलसी पत्र अर्पित करें, क्योंकि तुलसी भगवान विष्णु को बहुत प्रिय है। बिना तुलसी पत्र के भगवान विष्णु की पूजा अधूरी मानी जाती है।
भजन, कीर्तन और मंत्रों का जाप
इस दिन भगवान विष्णु के विशेष मंत्रों का जाप करें, जैसे “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय”। यह मंत्र भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय है और इसके जाप से उनकी कृपा शीघ्र प्राप्त होती है। विष्णु सहस्रनाम का पाठ भी इस दिन अत्यंत शुभ माना जाता है। इससे भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है। इस दिन भगवान विष्णु के भजन और कीर्तन का आयोजन करें। यह उनके प्रति भक्ति और समर्पण को दर्शाता है।भजन-कीर्तन में सहभागिता करने से मन को शांति मिलती है और भगवान की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
देवशयनी एकादशी पर दान-पुण्य
देवशयनी एकादशी के दिन दान का विशेष महत्व है। अन्न, वस्त्र, धन आदि का दान करें। जरूरतमंदों की सहायता करने से भगवान विष्णु अत्यंत प्रसन्न होते हैं और जीवन में सुख-समृद्धि का वास होता है।
भगवान विष्णु की आरती
ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी! जय जगदीश हरे।
भक्तजनों के संकट क्षण में दूर करे॥
जो ध्यावै फल पावै, दुख बिनसे मन का।
सुख-संपत्ति घर आवै, कष्ट मिटे तन का॥ ॐ जय…॥
मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूं किसकी।
तुम बिनु और न दूजा, आस करूं जिसकी॥ ॐ जय…॥
तुम पूरन परमात्मा, तुम अंतरयामी॥
पारब्रह्म परेमश्वर, तुम सबके स्वामी॥ ॐ जय…॥
तुम करुणा के सागर तुम पालनकर्ता।
मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥ ॐ जय…॥
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।
किस विधि मिलूं दयामय! तुमको मैं कुमति॥ ॐ जय…॥
दीनबंधु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे।
अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा तेरे॥ ॐ जय…॥
विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा।
श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा॥ ॐ जय…॥
तन-मन-धन और संपत्ति, सब कुछ है तेरा।
तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा॥ ॐ जय…॥
जगदीश्वरजी की आरती जो कोई नर गावे।
कहत शिवानंद स्वामी, मनवांछित फल पावे॥ ॐ जय…॥