PANCHANG: 15 सितम्बर 2024 का पंचांग……………शुभ योग में प्रदोष व्रत आज………..पंचांग पढ़कर करें दिन की शुरुआत

पंचांग का दर्शन, अध्ययन व मनन आवश्यक है। शुभ व अशुभ समय का ज्ञान भी इसी से होता है। अभिजीत मुहूर्त का समय सबसे बेहतर होता है। इस शुभ समय में कोई भी कार्य प्रारंभ कर सकते हैं। हिंदू पंचांग को वैदिक पंचांग के नाम से जाना जाता है। पंचांग के माध्यम से समय और काल की सटीक गणना की जाती है।
पंचांग मुख्य रूप से पांच अंगों से मिलकर बना होता है। ये पांच अंग तिथि, नक्षत्र, वार, योग और करण है। यहां हम दैनिक पंचांग में आपको शुभ मुहूर्त, राहुकाल, सूर्योदय और सूर्यास्त का समय, तिथि, करण, नक्षत्र, सूर्य और चंद्र ग्रह की स्थिति, हिंदूमास और पक्ष आदि की जानकारी देते हैं।
आज भाद्रपद माह शुक्ल पक्ष की द्वादशी है। आज श्रवण नक्षत्र है। आज रविवार है। आज राहुकाल 16:28 से 17:59 तक हैं। इस समय कोई भी शुभ कार्य करने से परहेज करें।
आज का पंचांग (अंबिकापुर)
दिनांक | 15 सितम्बर 2024 |
दिवस | रविवार |
माह | भाद्रपद |
पक्ष | शुक्ल |
तिथि | द्वादशी |
सूर्योदय | 05:44:55 |
सूर्यास्त | 17:59:17 |
करण | बालव |
नक्षत्र | श्रवण |
सूर्य राशि | सिंह |
चन्द्र राशि | मकर |
मुहूर्त (अंबिकापुर)
शुभ मुहूर्त- अभिजीत | 11:28 से 12:17 तक |
राहुकाल | 16:28 से 17:59 तक |
हर माह में आने वाले प्रदोष व्रत का अपना अलग महत्व होता है। हालांकि भादों माह के प्रदोष को सबसे खास माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भाद्रपद माह को भगवान गणेश के जन्म से जोड़ा जाता है। इस माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को गणेश चतुर्थी मनाई जाती है। ऐसे में महादेव की पूजा करना और भी लाभकारी होता है। पंचांग के अनुसार इस साल भादों माह के शुक्ल पक्ष में प्रदोष व्रत आज 15 सितंबर 2024 को रखा जा रहा। इस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग, रवि योग, सुकर्मा योग, अतिगण्ड योग का निर्माण हो रहा है। इस योग में शिव-परिवार की पूजा करने से सभी दुखों से मुक्ति मिलती है। ऐसे में आइए प्रदोष व्रत पूजा विधि के बारे में जानते हैं।
रवि प्रदोष व्रत तिथि
इस वर्ष भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि आज 15 सितंबर को शाम 06 बजकर 12 मिनट पर आरंभ हो रही है। इसका समापन 16 सितंबर को दोपहर 03 बजकर 10 मिनट पर होगा। प्रदोष व्रत की पूजा प्रदोष काल में की जाती है। ऐसे में ये उपवास आज 15 सितंबर 2024 को रखा जा रहा है। इस दिन रविवार होने के कारण ये रवि प्रदोष व्रत होगा।
रवि प्रदोष व्रत शुभ मुहूर्त
पंचांग के अनुसार, रवि प्रदोष व्रत पर पूजा का समय संध्याकाल 6 बजकर 26 मिनट से लेकर रात के 8 बजकर 46 मिनट तक रहेगा।
रवि प्रदोष व्रत का महत्व
रवि प्रदोष व्रत का आध्यात्मिक महत्व बहुत गहरा है। यह व्रत न केवल भगवान शिव की आराधना का साधन है, बल्कि सूर्य देव की उपासना भी इसके साथ जुड़ी है। सूर्य देव को स्वास्थ्य और ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है। रवि प्रदोष व्रत रखने से व्यक्ति को स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से मुक्ति मिलती है और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। धार्मिक मान्यता है कि इस व्रत को रखने से भगवान शिव अपने भक्तों के समस्त पापों का नाश कर उन्हें मोक्ष प्रदान करते हैं। साथ ही, इस व्रत से सूर्य ग्रह से संबंधित दोष भी दूर होते हैं और जातक की कुंडली में सूर्य ग्रह को मजबूत किया जाता है।
व्रत का फल
रवि प्रदोष व्रत का पालन करने से परिवार में सुख-शांति बनी रहती है और संतान सुख की प्राप्ति होती है। साथ ही, यह व्रत जीवन के कठिनाइयों और संकटों को दूर करता है और हर क्षेत्र में सफलता दिलाने में सहायक होता है। इस व्रत को करने से आर्थिक परेशानियों से छुटकारा मिलता है और घर में धन-धान्य की वृद्धि होती है।
प्रदोष व्रत पूजा विधि
- प्रदोष व्रत के दिन सुबह ही स्नान कर लेना चाहिए। इसके बाद विधि अनुसार महादेव की पूजा करें, और व्रत का संकल्प लें। फिर प्रदोष काल में सभी सामग्रियों के साथ पूजा स्थल पर अपना स्थान लें। सबसे पहले चौकी लगाएं। उसके बाद उसपर साफ वस्त्र बिछाएं। अब शिव जी की मूर्ति को उसपर स्थापित करें। इस दौरान ॐ नमः शिवाय मंत्र का जाप करते रहें। फिर आप देवी पार्वती की मूर्ति को स्थापित करें।
- अब सबसे पहले शिवलिंग पर शहद, घी और गंगाजल से अभिषेक करें। इसके बाद महादेव को बेलपत्र और भांग चढ़ाएं। वहीं माता पार्वती को फूल अर्पित करना चाहिए। इस दौरान भोलेनाथ को कनेर का फूल चढ़ाना शुभ माना जाता है।
- अब दीया जलाएं और आरती करना शुरू करे। इस दौरान शिव चालीसा का पाठ जरूर करें। ऐसा करने से मनचाहें परिणामों की प्राप्ति होती हैं।
- अंत में शिव परिवार को मिठाई का भोग लगाएं, और सभी गलतियों के लिए क्षमा मांगे।
शिव जी की आरती
ओम जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा।
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव अर्द्धांगी धारा।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
एकानन चतुरानन पञ्चानन राजे। हंसानन गरूड़ासन
वृषवाहन साजे।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहे।
त्रिगुण रूप निरखते त्रिभुवन जन मोहे।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
अक्षमाला वनमाला मुण्डमालाधारी।
त्रिपुरारी कंसारी कर माला धारी।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे।
सनकादिक गरुड़ादिक भूतादिक संगे।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।
मधु कैटव दोउ मारे, सुर भयहीन करे।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
लक्ष्मी, सावित्री पार्वती संगा।
पार्वती अर्द्धांगी, शिवलहरी गंगा।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
पर्वत सोहें पार्वतू, शंकर कैलासा।
भांग धतूर का भोजन, भस्मी में वासा।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
जया में गंग बहत है, गल मुण्ड माला।
शेषनाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
काशी में विराजे विश्वनाथ, नन्दी ब्रह्मचारी।
नित उठ दर्शन पावत, महिमा अति भारी।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
त्रिगुणस्वामी जी की आरति जो कोई नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी मनवान्छित फल पावे।।
ओम जय शिव ओंकारा।। ओम जय शिव ओंकारा।।
मां पार्वती की आरती
जय पार्वती माता, जय पार्वती माता.
ब्रह्म सनातन देवी, शुभ फल की दाता..
जय पार्वती माता…
अरिकुल पद्मा विनासनी जय सेवक त्राता.
जग जीवन जगदम्बा हरिहर गुण गाता.
जय पार्वती माता…
सिंह को वाहन साजे कुंडल है साथा.
देव वधु जहं गावत नृत्य कर ताथा..
जय पार्वती माता…
सतयुग शील सुसुन्दर नाम सती कहलाता.
हेमांचल घर जन्मी सखियन रंगराता..
जय पार्वती माता…
शुम्भ-निशुम्भ विदारे हेमांचल स्याता.
सहस भुजा तनु धरिके चक्र लियो हाथा..
जय पार्वती माता…
सृष्टि रूप तुही जननी शिव संग रंगराता.
नंदी भृंगी बीन लाही सारा मदमाता.
जय पार्वती माता…
देवन अरज करत हम चित को लाता.
गावत दे दे ताली मन में रंगराता..
जय पार्वती माता…
श्री प्रताप आरती मैया की जो कोई गाता.
सदा सुखी रहता सुख संपति पाता..
जय पार्वती माता…।