PANCHANG: 15 जुलाई 2024 का पंचांग……..आज मनाई जाएगी भड़ल्या नवमी………….अत्यंत शुभ माना जाता है यह दिन.………पंचांग पढ़कर करें दिन की शुरुआत
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पंचांग का दर्शन, अध्ययन व मनन आवश्यक है। शुभ व अशुभ समय का ज्ञान भी इसी से होता है। अभिजीत मुहूर्त का समय सबसे बेहतर होता है। इस शुभ समय में कोई भी कार्य प्रारंभ कर सकते हैं। हिंदू पंचांग को वैदिक पंचांग के नाम से जाना जाता है। पंचांग के माध्यम से समय और काल की सटीक गणना की जाती है।
पंचांग मुख्य रूप से पांच अंगों से मिलकर बना होता है। ये पांच अंग तिथि, नक्षत्र, वार, योग और करण है। यहां हम दैनिक पंचांग में आपको शुभ मुहूर्त, राहुकाल, सूर्योदय और सूर्यास्त का समय, तिथि, करण, नक्षत्र, सूर्य और चंद्र ग्रह की स्थिति, हिंदूमास और पक्ष आदि की जानकारी देते हैं।
आज आषाढ़ माह शुक्ल पक्ष की नवमी है। आज स्वाति नक्षत्र है। आज सोमवार है। आज राहुकाल 07:02 से 08:43 तक हैं। इस समय कोई भी शुभ कार्य करने से परहेज करें।
आज का पंचांग (अंबिकापुर)
दिनांक | 15 जुलाई 2024 |
दिवस | सोमवार |
माह | आषाढ़ |
पक्ष | शुक्ल |
तिथि | नवमी |
सूर्योदय | 05:21:51 |
सूर्यास्त | 18:44:30 |
करण | कौलव |
नक्षत्र | स्वाति |
सूर्य राशि | मिथुन |
चन्द्र राशि | तुला |
मुहूर्त (अंबिकापुर)
शुभ मुहूर्त- अभिजीत | 11:36 से 12:30 तक |
राहुकाल | 07:02 से 08:43 तक |
हिंदू पंचांग के अनुसार आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को भड़ल्या नवमी मनाई जाती है। इस बार भड़ल्या नवमी आज 15 जुलाई, सोमवार को मनाई जाएगी। शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि 14 जुलाई को शाम 5 बजकर 26 मिनट पर शुरू होगी, वहीं समापन आज 15 जुलाई को शाम सात बजकर 19 मिनट पर होगा। इस समय में अपने इष्टदेव की पूजा कर कोई भी शुभ कार्य कर सकते हैं। भड़ल्या नवमी को भड़रिया नौमी, भड़ल्या नवमी, भढली नवमी, भड़ली नवमी, भादरिया नवमी, भदरिया नवमी, कन्दर्प नवमी एवं बदरिया नवमी आदि नाम से भी जाना जाता है। इसी दिन आषाढ़ मास की गुप्त नवरात्रि की नवमी तिथि भी है। भड़ली नवमी में अबूझ मुहूर्त होता है। इस तिथि को बगैर पंचांग को देखे विवाह से लेकर कोई मांगलिक कार्य किये जा सकते हैं। इस बार नवमी के दिन कई शुभ योग बन रहे हैं। इसलिए इसका महत्व बढ़ जाता है।
भडल्या नवमी का धार्मिक महत्व
भड़ल्या नवमी तिथि को अबूझ मुहूर्त माना जाता है और यह तिथि भगवान विष्णु को समर्पित है। मान्यता है कि जिन लोगों का विवाह का मुहूर्त नहीं निकलता, उनका विवाह इस तिथि में किया जाता सकता है। इस तिथि को किया गया विवाह हर तरह से सुख-सौभाग्य प्रदान करने वाला होता है और जीवन में किसी तरह की परेशानी नहीं होती। देवशयनी एकादशी को भगवान विष्णु क्षीर सागर में शयन के लिए चले जाते हैं, उससे पहले केवल इस तिथि को ही शुभ व मांगलिक कार्य किए जा सकते हैं। देवशयनी एकादशी से चातुर्मास प्रारंभ हो जाता है, उसके बाद चार महीनों के लिए सभी शुभ कार्य रुक जाते हैं। नवमी तिथि को भगवान विष्णु की पूजा अर्चना और हवन करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है और जीवन में कभी भी धन धान्य की कमी नहीं होती है। इस दिन खरीदारी और नए कार्य की शुरुआत करने से मां लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है और घर में सुख शांति और समृद्धि का आगमन होता है।
पौराणिक कथा
कथा के अनुसार भगवान शिव और मां पार्वती के विवाह कराने हेतु देवी-देवता बहुत प्रयास करते हैं। देवी पार्वती भी भगवान शिव को पाने हेतु कठोर व्रत का पालन करती हैं किंतु भगवान शिव अपनी योग साधना से जब बाहर नहीं आते हैं, तब उस समय सभी देवता कामदेव के पास जाकर उन्हें भगवान शिव के भीतर काम भवना जागृत करने को कहते हैं, किंतु कामदेव जब भगवान शिव को जगाने हेतु प्रयास करते हैं तो उस समय भगवान अपने क्रोध के कारण तीसरे नेत्र से कामदेव को भस्म कर देते हैं। ऐसे में देवी रति अपने पति की मृत्यु से व्यथित होकर विलाप करने लगती हैं। भगवान शिव उनकी दशा देखकर कामदेव की पुन: प्राप्ति का आशीर्वाद देते हैं। इसी आशीर्वाद के अनुरूप आषाढ़ नवमी के दिन कामदेव के रूप में देव कन्दर्प का जन्म होता है। कन्दर्प देव को भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न के रूप में जन्म लेते हैं और कंदर्प नाम से विख्यात होते हैं। इसलिए इस दिन को विवाह आदि सभी शुभ कार्यों के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है।
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