PANCHANG: 08 अक्टूबर 2024 का पंचांग………..आज नवरात्रि का छठा दिन मां कात्यायनी को है समर्पित……….पंचांग पढ़कर करें दिन की शुरुआत

पंचांग का दर्शन, अध्ययन व मनन आवश्यक है। शुभ व अशुभ समय का ज्ञान भी इसी से होता है। अभिजीत मुहूर्त का समय सबसे बेहतर होता है। इस शुभ समय में कोई भी कार्य प्रारंभ कर सकते हैं। हिंदू पंचांग को वैदिक पंचांग के नाम से जाना जाता है। पंचांग के माध्यम से समय और काल की सटीक गणना की जाती है।
पंचांग मुख्य रूप से पांच अंगों से मिलकर बना होता है। ये पांच अंग तिथि, नक्षत्र, वार, योग और करण है। यहां हम दैनिक पंचांग में आपको शुभ मुहूर्त, राहुकाल, सूर्योदय और सूर्यास्त का समय, तिथि, करण, नक्षत्र, सूर्य और चंद्र ग्रह की स्थिति, हिंदूमास और पक्ष आदि की जानकारी देते हैं।
आज आश्विन माह शुक्ल पक्ष की षष्ठी है। आज ज्येष्ठा नक्षत्र है। आज मंगलवार है। आज राहुकाल 14:40 से 16:08 तक हैं। इस समय कोई भी शुभ कार्य करने से परहेज करें।
आज का पंचांग (अंबिकापुर)
दिनांक | 07 अक्टूबर 2024 |
दिवस | मंगलवार |
माह | आश्विन |
पक्ष | शुक्ल |
तिथि | षष्ठी |
सूर्योदय | 05:52:29 |
सूर्यास्त | 17:36:25 |
करण | कौलव |
नक्षत्र | ज्येष्ठा |
सूर्य राशि | कन्या |
चन्द्र राशि | वृश्चिक |
मुहूर्त (अंबिकापुर)
शुभ मुहूर्त- अभिजित | 11:21 से 12:08 तक |
राहुकाल | 14:40 से 16:08 तक |
शारदीय नवरात्रि का छठा दिन मां कात्यायनी की पूजा के लिए समर्पित होता है, जिन्हें देवी दुर्गा के छठे स्वरूप के रूप में जाना जाता है। यह दिन षष्ठी तिथि कहलाता है, और इसी दिन से दुर्गा पूजा का विधिवत आरंभ माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, मां कात्यायनी की पूजा से साधक को न केवल सभी प्रकार के रोगों से मुक्ति मिलती है, बल्कि उसे सुख, समृद्धि और भय से भी मुक्ति प्राप्त होती है।
देवी कात्यायनी की पौराणिक कथा
देवी कात्यायनी का महत्त्व पुराणों में वर्णित है। माना जाता है कि महर्षि कात्यायन ने भगवान शिव और मां दुर्गा की घोर तपस्या की थी और मां भगवती से यह वरदान मांगा था कि वे उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लें। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर मां दुर्गा ने उन्हें यह वरदान दिया। उसी समय, पृथ्वी पर महिषासुर नामक असुर का अत्याचार बढ़ गया था, जिसे परास्त करने के लिए देवी कात्यायनी प्रकट हुईं। महर्षि कात्यायन के घर में जन्म लेने के कारण उन्हें “कात्यायनी” कहा जाता है। इस स्वरूप में देवी ने महिषासुर का वध किया और धर्म की पुनर्स्थापना की।
इसके अतिरिक्त, एक अन्य मान्यता के अनुसार, ब्रज की गोपियों ने भगवान श्रीकृष्ण को पति रूप में पाने के लिए मां कात्यायनी की पूजा की थी। इस कारण से, आज भी कई कन्याएं अपनी मनचाही इच्छाओं की पूर्ति और उपयुक्त वर की प्राप्ति के लिए देवी कात्यायनी की आराधना करती हैं।
मां कात्यायनी का स्वरूप
मां कात्यायनी का स्वरूप बहुत ही तेजस्वी और भास्वर माना जाता है। उनका शरीर सोने के समान चमकता है, और वे सिंह पर सवार होती हैं। उनकी चार भुजाएं होती हैं—दाहिने हाथों में एक अभय मुद्रा में और दूसरा वरदान देने की मुद्रा में होता है, जबकि बाईं तरफ के हाथों में एक में तलवार और दूसरे में कमल का पुष्प धारण किया होता है। ज्योतिष में बृहस्पति ग्रह का संबंध मां कात्यायनी से जोड़ा जाता है, और इनकी पूजा से ग्रहों के कुप्रभाव से भी मुक्ति मिलती है।
पूजा विधि
मां कात्यायनी की पूजा विधिपूर्वक की जाती है। पूजा से पहले कलश पूजा का विधान होता है, जिसे गणेश जी का प्रतीक माना जाता है। पूजा के लिए सबसे पहले स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें और फिर गणेश जी की पूजा करें। गणेश जी को फूल, अक्षत और मोदक अर्पित करें। इसके बाद, नवग्रह और दशदिक्पाल की पूजा करें।
मां कात्यायनी की पूजा के दौरान एक फूल हाथ में लेकर उनका ध्यान करें। उन्हें फूल, अक्षत, कुमकुम और सिंदूर अर्पित करें। भोग के रूप में मां को शहद या मीठे पान का अर्पण करना शुभ माना जाता है। पूजा के अंत में घी का दीपक जलाएं और मां की आरती करें।
मंत्र और आरती
मां कात्यायनी के पूजन में इस मंत्र का जाप विशेष फलदायी होता है:
“या देवी सर्वभूतेषु माँ कात्यायनी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।”
आरती के रूप में यह भजन गाया जाता है:
“जय जय अम्बे, जय कात्यायनी। जय जग माता, जग की महारानी।
कात्यायनी रक्षक काया की, ग्रंथि काटे मोह माया की।”
मां कात्यायनी को विशेष रूप से लाल रंग के फूल, जैसे गुलाब या गुड़हल, अर्पित किए जाते हैं।