PANCHANG: 07 नवंबर 2024 का पंचांग………आज छठ पूजा के तीसरे दिन ‘संध्या अर्घ्य’ का है विशेष महत्व………पंचांग पढ़कर करें दिन की शुरुआत

पंचांग का दर्शन, अध्ययन व मनन आवश्यक है। शुभ व अशुभ समय का ज्ञान भी इसी से होता है। अभिजीत मुहूर्त का समय सबसे बेहतर होता है। इस शुभ समय में कोई भी कार्य प्रारंभ कर सकते हैं। हिंदू पंचांग को वैदिक पंचांग के नाम से जाना जाता है। पंचांग के माध्यम से समय और काल की सटीक गणना की जाती है।
पंचांग मुख्य रूप से पांच अंगों से मिलकर बना होता है। ये पांच अंग तिथि, नक्षत्र, वार, योग और करण है। यहां हम दैनिक पंचांग में आपको शुभ मुहूर्त, राहुकाल, सूर्योदय और सूर्यास्त का समय, तिथि, करण, नक्षत्र, सूर्य और चंद्र ग्रह की स्थिति, हिंदूमास और पक्ष आदि की जानकारी देते हैं।
आज कार्तिक माह शुक्ल पक्ष की षष्ठी है। आज पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र है। आज गुरुवार है। आज राहुकाल 13:04 से 14:28 तक हैं। इस समय कोई भी शुभ कार्य करने से परहेज करें।
आज का पंचांग (अंबिकापुर)
दिनांक | 07 नवंबर 2024 |
दिवस | गुरुवार |
माह | कार्तिक |
पक्ष | शुक्ल |
तिथि | षष्ठी |
सूर्योदय | 06:07:06 |
सूर्यास्त | 17:14:26 |
करण | कौलव |
नक्षत्र | पूर्वाषाढ़ा |
सूर्य राशि | तुला |
चन्द्र राशि | धनु |
मुहूर्त (अंबिकापुर)
शुभ मुहूर्त- अभिजित | 11:19 से 12:03 तक |
राहुकाल | 13:04 से 14:28 तक |
छठ पूजा का तीसरा दिन, जिसे संध्या अर्घ्य या संध्या अर्घ्य का दिन कहा जाता है, भक्तों के लिए विशेष महत्त्व रखता है। इस दिन व्रतधारी अपने श्रद्धा और समर्पण का प्रतीक सूर्य को अर्घ्य देकर उन्हें नमन करते हैं। छठ पूजा का यह तीसरा दिन आत्म-संयम, त्याग, और प्रकृति के प्रति सम्मान का प्रतीक है। इस पर्व को मनाने वाले लोग अपनी भक्ति और धार्मिक आस्था से सूर्य देवता को धन्यवाद देते हैं, जो जीवन का आधार माने जाते हैं।
व्रत और स्नान की प्रक्रिया
छठ पूजा का तीसरा दिन व्रतधारियों के लिए कठिन तपस्या का होता है। इस दिन वे निर्जला व्रत रखते हैं, जिसमें वे पानी और अन्न का सेवन नहीं करते। इसका पालन करने के पीछे मान्यता है कि इससे व्रतधारी की आत्मा और शरीर शुद्ध होते हैं। सुबह-सुबह भक्त अपने स्थानीय नदी, तालाब, या किसी जलाशय पर जाकर स्नान करते हैं, जो इस पूजा का एक अभिन्न हिस्सा है। स्नान के पश्चात, व्रतधारी घर लौटते हैं और पूजा की तैयारियों में लग जाते हैं। स्नान के माध्यम से वे अपने शरीर को पवित्र कर पूजा के लिए मानसिक और शारीरिक रूप से तैयार होते हैं।
संध्या अर्घ्य की विशेषता
तीसरे दिन का संध्या अर्घ्य छठ पूजा का प्रमुख अंग है। इस समय व्रतधारी अपनी पूजा की थाली और डलिया में प्रसाद लेकर नदी या तालाब के किनारे सूर्यास्त के समय इकट्ठा होते हैं। सूर्य को जल अर्पित करते समय यह मान्यता होती है कि वे सूर्य देव को धन्यवाद ज्ञापित कर रहे हैं, जिनके कारण पृथ्वी पर जीवन संभव है। संध्या अर्घ्य में व्रतधारी सूर्य देव से आशीर्वाद और अपने परिवार की सुख-शांति और समृद्धि की कामना करते हैं।
संध्या अर्घ्य का समय
छठ पूजा पर सबसे महत्वपूर्ण दिन तीसरा होता है। इस दिन संध्या अर्घ्य का होता है। इस दिन व्रती घाट पर आकर डूबते सूर्य को अर्घ्य देते हैं। पंचांग के अनुसार अंबिकापुर में 7 नवंबर को सूर्योदय प्रातः 06:07:06 बजे तथा सूर्यास्त सायं 05:14:26 बजे होगा। इस दिन भक्त कमर तक पानी में खड़े होकर डूबते सूर्य को अर्घ्य देते हैं।
उगते सूर्य को अर्घ्य
चौथा दिन यानी सप्तमी तिथि छठ महापर्व का अंतिम दिन होता है। इस दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद व्रत का पारण का होता है। 08 नवंबर को उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा। पंचांग के अनुसार अंबिकापुर में उषा अर्घ्य 08 नवंबर 2024 की सुबह 06 बजकर 07 मिनट को होगा। इसके बाद ही 36 घंटे का व्रत समाप्त होता है। अर्घ्य देने के बाद व्रती प्रसाद का सेवन करके व्रत का पारण करती हैं।
सूप को ऐसे सजाएँ
- छठ पूजा के लिए दो बड़े बांस की टोकरी लें, जिन्हें पथिया और सूप के नाम से जाना जाता है।
- इसके साथ ही डगरी, पोनिया, ढाकन, कलश, पुखार, सरवा भी जरूर रख लें।
- बांस की टोकरी में भगवान सूर्य देव को अर्पित करने वाला भोग रखा जाता है। जिनमें ठेकुआ, मखान, अक्षत, भुसवा, सुपारी, अंकुरी, गन्ना आदि चीजें शामिल हैं।
- इसके अलावा टोकरी में पांच प्रकार के फल जैसे शरीफा, नारियल, केला, नाशपाती और डाभ (बड़ा वाला नींबू) रखा जाता है।
- इसके साथ ही टोकरी में पंचमेर यानी पांच रंग की मिठाई रखी जाती है। जिन टोकरी में आप छठ पूजा के लिए प्रसाद रखा रहे हैं उन पर सिंदूर और पिठार जरूर लगा लें।
- छठ के पहले दिन डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है जिसे संध्या अर्घ्य के नाम से जाना जाता है।
- इस दिन भगवान सूर्य देव को अर्घ्य देने के लिए बांस या पीतल की टोकरी या सूप का उपयोग करना चाहिए।
प्रसाद और पूजा का महत्व
छठ पूजा में प्रसाद का विशेष महत्व है। इसमें ठेकुआ, फल, गन्ना, नारियल, चावल और अन्य शुद्ध सामग्री शामिल होती हैं। संध्या अर्घ्य के समय यह प्रसाद डलिया में सजाया जाता है और श्रद्धालु इसे सूर्य देव को अर्पित करते हैं। यह प्रसाद न केवल भगवान को अर्पण के लिए है, बल्कि यह भी माना जाता है कि इसे ग्रहण करने से मनुष्य के मन और आत्मा को शांति प्राप्त होती है। ठेकुआ, गन्ना, और नारियल जैसे प्राकृतिक उत्पादों का प्रसाद में उपयोग करने का भी गहरा धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है।
परिवार और समाज में सामूहिकता का प्रतीक
छठ पूजा का तीसरा दिन परिवार और समाज के सामूहिकता के प्रतीक के रूप में भी देखा जाता है। इस दिन व्रतधारी परिवार के सभी सदस्य एकजुट होकर सूर्यास्त के समय नदी या तालाब किनारे अर्घ्य देने जाते हैं। इस अवसर पर सभी लोग एक साथ मिलकर पूजा करते हैं और एक-दूसरे के साथ अपनी खुशियाँ बाँटते हैं। छठ पूजा में सामूहिकता का यह भाव, जो व्यक्ति के धार्मिक और सामाजिक जीवन को मजबूत बनाता है, लोगों को साथ में जोड़े रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
श्रद्धा, विश्वास और संयम का त्योहार
छठ पूजा का तीसरा दिन श्रद्धा, विश्वास और संयम का प्रतीक है। इस दिन व्रतधारी अपना सब कुछ छोड़कर केवल अपनी आस्था और विश्वास के बल पर सूर्य की पूजा करते हैं। कठिन व्रत, स्नान, और प्रसाद अर्पण जैसी प्रक्रियाएँ उनके दृढ़ संकल्प और आत्म-संयम को दर्शाती हैं। छठ पूजा के माध्यम से श्रद्धालु प्रकृति के प्रति अपना आभार व्यक्त करते हैं और सौर ऊर्जा के महत्व को समझते हैं।
समापन
छठ पूजा का तीसरा दिन व्रतधारियों के लिए विशेष कठिनाइयों और अनुशासन का होता है, लेकिन उनकी आस्था और समर्पण इसे आसान बना देती है। संध्या अर्घ्य का यह दिन न केवल सूर्य देवता के प्रति आस्था का प्रतीक है, बल्कि मानव जीवन और प्रकृति के बीच के अटूट संबंध को भी दर्शाता है।