PANCHANG: 07 जुलाई 2024 का पंचांग……..पुरी में रथयात्रा है आज………..जानिए इस यात्रा में कैसा होता है रथ………यहाँ देखें रथयात्रा लाइव………..पंचांग पढ़कर करें दिन की शुरुआत

पंचांग का दर्शन, अध्ययन व मनन आवश्यक है। शुभ व अशुभ समय का ज्ञान भी इसी से होता है। अभिजीत मुहूर्त का समय सबसे बेहतर होता है। इस शुभ समय में कोई भी कार्य प्रारंभ कर सकते हैं। हिंदू पंचांग को वैदिक पंचांग के नाम से जाना जाता है। पंचांग के माध्यम से समय और काल की सटीक गणना की जाती है।

पंचांग मुख्य रूप से पांच अंगों से मिलकर बना होता है। ये पांच अंग तिथि, नक्षत्र, वार, योग और करण है। यहां हम दैनिक पंचांग में आपको शुभ मुहूर्त, राहुकाल, सूर्योदय और सूर्यास्त का समय, तिथि, करण, नक्षत्र, सूर्य और चंद्र ग्रह की स्थिति, हिंदूमास और पक्ष आदि की जानकारी देते हैं।

आज आषाढ़ माह शुक्ल पक्ष की द्वितीया है व पुष्य नक्षत्र है। आज रविवार है। आज राहुकाल 17:05 से 18:46 तक हैं। इस समय कोई भी शुभ कार्य करने से परहेज करें।

आज का पंचांग (अंबिकापुर)

दिनांक07 जुलाई 2024
दिवसरविवार
माहआषाढ़
पक्षशुक्ल
तिथिद्वितीया
सूर्योदय05:18:37
सूर्यास्त18:45:45
करणबालव
नक्षत्रपुष्य
सूर्य राशिमिथुन
चन्द्र राशिकर्क

मुहूर्त (अंबिकापुर)

शुभ मुहूर्त- अभिजीत 11:35 से 12:29 तक
राहुकाल 17:05 से 18:46 तक

भारत के चार धामों में से एक है जगन्नाथपुरी। उड़ीसा राज्य में स्थित पुरी में श्रीजगन्नाथ मंदिर वैष्णव सम्प्रदाय का एक प्रसिद्द हिन्दू मंदिर है जो जग के स्वामी भगवान श्री कृष्ण को समर्पित है। जगन्नाथपुरी को धरती का वैकुंठ कहा गया है, इस स्थान को शाकक्षेत्र, नीलांचल और नीलगिरि भी कहते हैं। विश्व विख्यात पुरी की रथयात्रा आज आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया को प्रारम्भ हो रही है। रथ यात्रा के लिए बलराम, श्रीकृष्ण और देवी सुभद्रा के लिए नीम की लकड़ियों से तीन अलग-अलग रथ तैयार किए गए है।

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चारों वेदों के रूप में हैं विराजमान

अनेकों पुराणों के अनुसार पुरी में भगवान कृष्ण ने अनेकों लीलाएं की थीं और नीलमाधव के रूप में यहां अवतरित हुए। उड़ीसा स्थित यह धाम भी द्वारका की तरह ही समुद्र तट पर स्थित है। जगत के नाथ यहां अपने बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ विराजते हैं। तीनों ही देव प्रतिमाएं काष्ठ की बनी हुई हैं। हर बारह वर्ष बाद इन मूर्तियों को बदले जाने का विधान है। पवित्र वृक्ष की लकड़ियों से पुनः मूर्तियों की प्रतिकृति बनाकर फिर से उन्हें एक बड़े आयोजन के साथ प्रतिष्ठित किया जाता है। वेदों के अनुसार भगवान हलधर ऋग्वेद स्वरूप हैं, श्री हरि (नृसिंह) सामदेव स्वरूप हैं, सुभद्रा देवी यजुर्वेद की मूर्ति हैं और सुदर्शन चक्र अथर्ववेद का स्वरूप माना गया है। यहां श्री हरि दारुमय रूप में विराजमान हैं। वर्तमान मंदिर का निर्माण कार्य कलिंग राजा अनंतवर्मन चोडगंगदेव ने आरम्भ कराया था।

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ऐसे होते हैं इनके रथ

रथ यात्रा में सबसे आगे बलराम जी का रथ, बीच में देवी सुभद्रा और पीछे जगन्नाथ श्रीकृष्ण का रथ होता है। बलराम जी के रथ को ‘तालध्वज’ जिसका रंग लाल और हरा होता है, देवी सुभद्रा के रथ को ‘दर्पदलन’या’पद्मरथ’ कहा जाता है जो काले या नीले रंग का होता है। जबकि जगन्नाथ जी के रथ को ‘नंदिघोष’ या ‘गरुड़ध्वज’ कहते हैं जो लाल और पीले रंग का होता है।

जगन्नाथ जी का ‘नंदिघोष’ 45.6 फीट ऊंचा, बलराम जी का तालध्वज 45 फीट ऊंचा और देवी सुभद्रा का दर्पदलन रथ 44.6 फीट ऊंचा होता है। जगन्नाथ मंदिर से रथ यात्रा शुरू होकर 3 किलोमीटर दूर गुंडीचा मंदिर पहुंचती है। इस स्थान को भगवान की मौसी का घर भी माना जाता है। एक अन्य मान्यता के अनुसार यहीं पर विश्वकर्मा ने इन तीनों प्रतिमाओं का निर्माण किया था,अतः यह स्थान जगन्नाथ जी की जन्म स्थली भी है। यहां तीनों देव 7 दिनों के लिए विश्राम करते हैं। आषाढ़ माह के दसवें दिन सभी रथ फिर से मुख्य मंदिर की ओर प्रस्थान करते हैं। वापसी की यह यात्रा बहुड़ा यात्रा कहलाती है। जगन्नाथ मंदिर पहुंचने के बाद वैदिक मंत्रोच्चार के बीच देव-विग्रहों को पुनः प्रतिष्ठित किया जाता है।

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