PANCHANG: 06 नवंबर 2024 का पंचांग………आज छठ पूजा के दूसरे दिन ‘खरना’ का है विशेष महत्व……………जानें परंपराएं और पूजा विधि……….पंचांग पढ़कर करें दिन की शुरुआत

पंचांग का दर्शन, अध्ययन व मनन आवश्यक है। शुभ व अशुभ समय का ज्ञान भी इसी से होता है। अभिजीत मुहूर्त का समय सबसे बेहतर होता है। इस शुभ समय में कोई भी कार्य प्रारंभ कर सकते हैं। हिंदू पंचांग को वैदिक पंचांग के नाम से जाना जाता है। पंचांग के माध्यम से समय और काल की सटीक गणना की जाती है।
पंचांग मुख्य रूप से पांच अंगों से मिलकर बना होता है। ये पांच अंग तिथि, नक्षत्र, वार, योग और करण है। यहां हम दैनिक पंचांग में आपको शुभ मुहूर्त, राहुकाल, सूर्योदय और सूर्यास्त का समय, तिथि, करण, नक्षत्र, सूर्य और चंद्र ग्रह की स्थिति, हिंदूमास और पक्ष आदि की जानकारी देते हैं।
आज कार्तिक माह शुक्ल पक्ष की पंचमी है। आज मूल नक्षत्र है। आज बुधवार है। आज राहुकाल 11:41 से 13:04 तक हैं। इस समय कोई भी शुभ कार्य करने से परहेज करें।
आज का पंचांग (अंबिकापुर)
दिनांक | 06 नवंबर 2024 |
दिवस | बुधवार |
माह | कार्तिक |
पक्ष | शुक्ल |
तिथि | पंचमी |
सूर्योदय | 06:06:30 |
सूर्यास्त | 17:14:53 |
करण | बव |
नक्षत्र | मूल |
सूर्य राशि | तुला |
चन्द्र राशि | धनु |
मुहूर्त (अंबिकापुर)
शुभ मुहूर्त- अभिजित | आज अभिजित नहीं है। |
राहुकाल | 11:41 से 13:04 तक |
छठ पूजा, जो सूर्य देव और छठी मइया को समर्पित है, मुख्य रूप से बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश, और नेपाल के कुछ हिस्सों में हर्षोल्लास के साथ मनाई जाती है। चार दिनों तक चलने वाले इस पर्व का दूसरा दिन विशेष रूप से “खरना” के रूप में जाना जाता है। छठ पूजा के चारों दिन व्रत करने वाले श्रद्धालुओं के लिए पवित्रता और निष्ठा का प्रतीक है। इस दिन व्रतधारी निर्जला व्रत रखते हैं और संध्या के समय सूर्य देवता की पूजा करके विशेष प्रसाद का सेवन करते हैं।
खरना का महत्त्व
खरना छठ पूजा का दूसरा दिन होता है और इसे “लोहंडा” भी कहा जाता है। इस दिन व्रतधारी सूरज अस्त होने के बाद प्रसाद ग्रहण करते हैं, जिसे “खरना प्रसाद” कहते हैं। इस प्रसाद में विशेष रूप से चावल, गुड़ की खीर, और रोटी होती है। इसे पूरी श्रद्धा और साफ-सफाई के साथ बनाया जाता है, ताकि पूजा के दौरान किसी प्रकार की अशुद्धता ना हो।
इस दिन का महत्व इसलिए भी है क्योंकि व्रतधारी पूरे दिन निर्जल रहते हैं, और रात में खरना के प्रसाद को ग्रहण करने के बाद अगले दो दिनों के लिए कठिन व्रत का पालन करते हैं। यह प्रसाद ग्रहण कर व्रतधारी अगले दो दिनों तक निर्जल रहकर उपवास करते हैं। इस व्रत का उद्देश्य स्वयं को तप और त्याग से मजबूत बनाना है, ताकि भगवान सूर्य और छठी मइया का आशीर्वाद प्राप्त किया जा सके।
पूजा की विधि
खरना पूजा के दिन व्रतधारी सुबह जल्दी उठकर स्नान करते हैं और स्वच्छ वस्त्र धारण कर पूजा की तैयारी करते हैं। घर के पूजा स्थल को विशेष रूप से सजाया जाता है और प्रसाद तैयार करने के लिए एक पवित्र स्थान चुना जाता है। प्रसाद में मुख्य रूप से गुड़ की खीर, चावल और गेहूं के आटे से बनी रोटी शामिल होती है। यह प्रसाद पूरी निष्ठा और पवित्रता से बनाया जाता है।
शाम को सूर्यास्त के समय व्रतधारी सूर्य देवता और छठी मइया का ध्यान करते हुए पूजा-अर्चना करते हैं। पूजा के बाद प्रसाद ग्रहण कर व्रतधारी अपने व्रत का संकल्प लेते हैं और अगले दिन के कठिन निर्जल उपवास के लिए स्वयं को तैयार करते हैं।
छठ व्रत का वैज्ञानिक और आध्यात्मिक महत्व
छठ पूजा का वैज्ञानिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से भी विशेष महत्व है। ऐसा माना जाता है कि सूर्य की किरणों से शरीर में ऊर्जा का संचार होता है, और सूर्योपासना से मानसिक व शारीरिक शक्ति बढ़ती है। इस पूजा में सादगी, अनुशासन और स्वच्छता का विशेष ध्यान रखा जाता है। इसमें किसी प्रकार के तामझाम या व्यर्थ के दिखावे का कोई स्थान नहीं है।
छठ पूजा में विशेष रूप से स्वच्छता पर ध्यान दिया जाता है, जो आज के समय में स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता को भी बढ़ावा देता है। श्रद्धालु इस दौरान नदियों, तालाबों और अन्य जल स्रोतों में स्नान कर स्वयं को शुद्ध करते हैं और अपने मन को पवित्र रखने का प्रयास करते हैं। इसके अलावा, इस व्रत के दौरान जो सात्विक आहार लिया जाता है, वह भी शारीरिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में सहायक है।
आधुनिक जीवन में छठ का महत्व
छठ पूजा की बढ़ती लोकप्रियता आधुनिक जीवन में भी देखी जा सकती है। आजकल न केवल बिहार और पूर्वांचल के लोग बल्कि देश-विदेश में भी यह पर्व बड़े ही धूमधाम से मनाया जा रहा है। इस पर्व में परिवार और समाज के लोग एकत्रित होकर एक साथ पूजा करते हैं, जो पारिवारिक और सामाजिक बंधन को मजबूत बनाता है।
छठ पूजा न केवल एक धार्मिक परंपरा है बल्कि यह सामाजिक समरसता, स्वच्छता और अनुशासन का प्रतीक है।