PANCHANG: 04 दिसंबर 2023 का पंचांग………आज करें शिवाष्टक स्तोत्र का पाठ……..मिलेगा आर्थिक तंगी से निजात……….पंचांग पढ़कर करें दिन की शुरुआत
पंचांग का दर्शन, अध्ययन व मनन आवश्यक है। शुभ व अशुभ समय का ज्ञान भी इसी से होता है। अभिजीत मुहूर्त का समय सबसे बेहतर होता है। इस शुभ समय में कोई भी कार्य प्रारंभ कर सकते हैं।
आज मार्गशीर्ष माह कृष्ण पक्ष की सप्तमी है व मघा नक्षत्र है। आज सोमवार है। आज राहुकाल 07:45 से 09:06 तक हैं। इस समय कोई भी शुभ कार्य करने से परहेज करें।
आज का पंचांग (अंबिकापुर)
दिनांक | 04 दिसंबर 2023 |
दिवस | सोमवार |
माह | मार्गशीर्ष |
पक्ष | कृष्ण पक्ष |
तिथि | सप्तमी |
सूर्योदय | 06:24:34 |
सूर्यास्त | 17:09:53 |
करण | बव |
नक्षत्र | मघा |
सूर्य राशि | वृश्चिक |
चन्द्र राशि | सिंह |
मुहूर्त (अंबिकापुर)
शुभ मुहूर्त- अभिजीत | 11:26 से 12:09 तक |
राहुकाल | 07:45 से 09:06 तक |
सोमवार का दिन भगवान शिव की पूजा के लिए समर्पित है। इस दिन भोलेनाथ की पूजा अगर सच्ची श्रद्धा से की जाए, तो वे अपने भक्तों की सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं। ऐसे में जो लोग मानसिक विकार या फिर आर्थिक तंगी से परेशान हैं, तो उन्हें शिव पूजन अवश्य करना चाहिए। साथ ही सोमवार के दिन यहां दिए गए शिवाष्टक स्तोत्रका पाठ करना चाहिए, जो बेहद कल्याणकारी है। तो आइए पढ़ते हैं-
शिवाष्टक स्तोत्र
जय शिव शंकर, जय गंगाधर, करुणाकर करतार हरे।
जय कैलाशी, जय अविनाशी, सुखराशि सुखसार हरे ।।
जय शशि शेखर, जय डमरूधर, जय जय प्रेमागर हरे।
जय त्रिपुरारी, जय मदहारी, अमित, अनन्त, अपार हरे।।
निर्गुण जय जय, सगुण अनामय, निराकार साकार हरे।
पारवती पति हर हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे ।।
जय रामेश्वर, जय नागेश्वर, वैद्यनाथ, केदार हरे ।
मल्लिकार्जुन, सोमनाथ जय, महाकाल ओंकार हरे।।
त्रयम्बकेश्वर, जय घुश्मेश्वर, भीमेश्वर, जगातार हरे।
काशी पति श्री विश्वनाथ जय, मंगलमय, अघहार हरे।।
नीलकण्ठ जय, भूतनाथ जय, मृत्युञ्जय अविकार हरे।
पारवती पति हर हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे ।।
जय महेश, जय जय भवेश, जय आदिदेव, महादेव विभो।
किस मुख से हे गुणातीत, प्रभु तव अपार गुण वर्णन हो ।।
जय भवकारक तारक, हारक, पातक-दारक शिव शम्भो।
दीन दुःखहर, सर्व सुखाकर, प्रेम-सुधाधर दया करो।।
पार लगा दो भवसागर से, बन कर कर्णाधार हरे।
पारवती पति हर हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे ।।
जय मनभावन, जय पतितपावन, शोक नशावन शिवशम्भो।
विपद विदारन, अधम उद्धारन, सत्य सनातन शिवशम्भो।।
सहज वचनहर, जलज नयनवर, धवल-वरन-तन शिवशम्भो ।
मदन-कदन-कर, पाप-हरन-हर, चरन-मनन-धन शिवशम्भो ।।
विवसन, विश्वरूप प्रलयंकर, जग के मूलाधार हरे।
पारवती पति हर हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे ।।
भोलानाथ कृपालु, दयामय, औढरदानी शिव योगी।
निमिष मात्र में देते हैं, नव निधि मनमानी शिव योगी।।
सरल हृदय, अति करुणा सागर, अकथ कहानी शिव योगी ।
भक्तो पर सर्वस्व लुटाकर, बने मसानी शिव योगी ।।
स्वयं अकिंचन, जन मन रंजन, पर शिव परम उदार हरे।
पारवती पति हर हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे।।
आशुतोष ! इस मोहमायी निद्रा से मुझे जगा देना।
विषम वेदना से विषयों की मायाधीश छुड़ा देना ।।
रूप सुधा की एक बूंद से जीवन मुक्त बना देना।
दिव्य ज्ञान भण्डर युगल चरणों की लगन लगा देना ।।
एक बार इस मन मन्दिर में कीजे पद-संचार हरे।
पारवती पति हर हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे।।
दानी हो दो भिक्षा में, अपनी अनुपायनी भक्ति प्रभो।
शक्तिमान हो दो अविचल, निष्काम प्रेम की शक्ति प्रभो।।
त्यागी हो दो इस असार, संसार से पूर्ण विरक्ति प्रभो।
परमपिता हो दो तुम अपने, चरणों में अनुरक्ति प्रभो ।।
स्वामी हो निज सेवक की, सुन लेना करुण पुकार हरे।
पारवती पति हर हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे।।
तुम बिन ‘बेकल’ हूँ प्राणेश्वर, आ जाओ भगवन्त हरे।
चरण शरण की बांह गहो, हे उमारमण प्रियकन्त हरे।।
विरह व्यथित हूँ दीन दु:खी हूँ, दीनदायल अनन्त हरे।
आओ तुम मेरे हो जाओ, आ जाओ श्रीमन्त हरे।।
मेरी इस दयनीय दशा पर, कुछ तो करो विचार हरे।
पारवती पति हर हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे।।
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