PANCHANG: 01 नवंबर 2024 का पंचांग………आज या कल, कब है गोवर्धन पूजा?…………जानें शुभ मुहूर्त और पूजन विधि……….पंचांग पढ़कर करें दिन की शुरुआत

पंचांग का दर्शन, अध्ययन व मनन आवश्यक है। शुभ व अशुभ समय का ज्ञान भी इसी से होता है। अभिजीत मुहूर्त का समय सबसे बेहतर होता है। इस शुभ समय में कोई भी कार्य प्रारंभ कर सकते हैं। हिंदू पंचांग को वैदिक पंचांग के नाम से जाना जाता है। पंचांग के माध्यम से समय और काल की सटीक गणना की जाती है।
पंचांग मुख्य रूप से पांच अंगों से मिलकर बना होता है। ये पांच अंग तिथि, नक्षत्र, वार, योग और करण है। यहां हम दैनिक पंचांग में आपको शुभ मुहूर्त, राहुकाल, सूर्योदय और सूर्यास्त का समय, तिथि, करण, नक्षत्र, सूर्य और चंद्र ग्रह की स्थिति, हिंदूमास और पक्ष आदि की जानकारी देते हैं।
आज कार्तिक माह कृष्ण पक्ष की अमावस्या है। आज चित्रा नक्षत्र है। आज शुक्रवार है। आज राहुकाल 10:16 से 11:41 तक हैं। इस समय कोई भी शुभ कार्य करने से परहेज करें।
आज का पंचांग (अंबिकापुर)
दिनांक | 01 नवंबर 2024 |
दिवस | शुक्रवार |
माह | कार्तिक |
पक्ष | कृष्ण |
तिथि | अमावस्या |
सूर्योदय | 06:03:36 |
सूर्यास्त | 17:17:36 |
करण | नाग |
नक्षत्र | स्वाति |
सूर्य राशि | तुला |
चन्द्र राशि | तुला |
मुहूर्त (अंबिकापुर)
शुभ मुहूर्त- अभिजित | 11:18 से 12:03 तक |
राहुकाल | 10:16 से 11:41 तक |
गोवर्धन पूजा का हिंदू धर्म में विशेष महत्त्व है। इसे कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाया जाता है, जो दीपावली के अगले दिन होती है। गोवर्धन पूजा का पर्व भगवान श्रीकृष्ण की कथा और गोवर्धन पर्वत से जुड़ा हुआ है। इस पूजा का उद्देश्य भक्तों को प्रकृति, संरक्षण, और संतुलन का संदेश देना है। श्रीकृष्ण ने इस दिन इंद्र देव के अहंकार को तोड़ने और अपने भक्तों की रक्षा करने के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठाया था। इस वर्ष गोवर्धन पूजा 2 नवंबर को मनाई जाएगी।
गोवर्धन पूजा का महत्व और तिथि
2024 में गोवर्धन पूजा 2 नवंबर को मनाई जाएगी। प्रतिपदा तिथि आज 1 नवंबर की शाम 6:16 बजे से शुरू होगी और कल 2 नवंबर की रात 8:21 बजे समाप्त होगी। उदया तिथि का मान रखते हुए, पूजा कल 2 नवंबर को की जाएगी। ऐसी मान्यता है कि इस दिन घर में गोवर्धन पूजा करने से सुख-समृद्धि बनी रहती है और परिवार में धन-धान्य की कोई कमी नहीं होती है।
गोवर्धन पूजा का शुभ मुहूर्त
गोवर्धन पूजा के लिए कई शुभ मुहूर्त होते हैं ताकि भक्तजन अपनी सुविधानुसार पूजा कर सकें। इस वर्ष के प्रमुख मुहूर्त निम्नलिखित हैं:
- प्रातःकाल मुहूर्त: सुबह 6:34 से 8:46 बजे तक।
- विजय मुहूर्त: दोपहर 2:09 से 2:56 बजे तक।
- संध्याकाल मुहूर्त: दोपहर 3:23 से 5:35 बजे तक।
- गोधूलि मुहूर्त: शाम 6:05 से 6:30 बजे तक।
- त्रिपुष्कर योग: 2 नवंबर रात 8:21 बजे से 3 नवंबर सुबह 5:58 बजे तक।
गोवर्धन पूजा विधि
गोवर्धन पूजा के दिन गाय के गोबर से भगवान गिरिराज (गोवर्धन) की मूर्ति बनाई जाती है। इसे घर के आंगन में या पूजा स्थल पर स्थापित किया जाता है। इसके बाद भगवान कृष्ण, गोवर्धन पर्वत और गौमाता की पूजा की जाती है। मूर्ति के सामने दीप जलाकर पूजा की जाती है और गोवर्धन भगवान की नाभि पर दीपक रखा जाता है। पूजा में पंचामृत, मिष्ठान्न, तथा अनाजों का प्रयोग होता है। इस पूजा के बाद अन्नकूट का आयोजन किया जाता है, जिसमें भिन्न-भिन्न प्रकार के व्यंजन बनाकर भगवान को अर्पित किए जाते हैं।
गोवर्धन पूजा के दौरान गिरिराज की नाभि पर दीपक रखने का महत्व
गोवर्धन पूजा के दिन गिरिराज जी की नाभि पर दीपक रखने का विशेष महत्व है। यह परंपरा भगवान श्रीकृष्ण द्वारा इंद्र के अहंकार को चूर करने और ब्रजवासियों की रक्षा के प्रतीक के रूप में जानी जाती है। पौराणिक कथा के अनुसार, जब भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली पर उठाया था, तब उस स्थान को पर्वत का मध्य भाग माना गया। उसी मध्य भाग, यानी नाभि पर दीपक रखने का उद्देश्य भक्तों के लिए घर में सुख-शांति और धन-संपत्ति का प्रवाह बनाए रखना है।
पौराणिक कथा
कथा के अनुसार, ब्रजवासियों ने वर्षा देवता इंद्र को खुश करने के लिए हर साल पूजा का आयोजन किया था। भगवान श्रीकृष्ण ने देखा कि ब्रजवासी इंद्र की आराधना कर रहे हैं और उनसे इस बारे में पूछा। भगवान कृष्ण ने कहा कि हमें प्रकृति और गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए, क्योंकि यह हमें जीविका के साधन प्रदान करता है। ब्रजवासियों ने श्रीकृष्ण की सलाह मानकर गोवर्धन पर्वत की पूजा आरंभ कर दी।
इंद्र ने इस पर क्रोधित होकर ब्रज में मूसलधार वर्षा कर दी। ब्रजवासी भयभीत हो गए और भगवान कृष्ण की शरण में आए। तब श्रीकृष्ण ने अपनी छोटी उंगली पर गोवर्धन पर्वत उठाया और सभी ब्रजवासियों और उनके पशुओं को शरण दी। इस घटना से इंद्र का अहंकार टूट गया और उन्होंने श्रीकृष्ण से क्षमा मांगी। इसके बाद से ही गोवर्धन पूजा का महत्व बढ़ गया और यह परंपरा स्थापित हो गई।
दीपक रखने का कारण
जब भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत उठाया था, तो उनकी उंगली पर लालिमा आ गई थी। इस कारण ब्रजवासी उनकी उंगली पर घी, मक्खन, शहद और तेल लगाने लगे। इस परंपरा का प्रतीकात्मक महत्त्व यह है कि दीपक और अन्य सामग्री गिरिराज के मध्य भाग यानी नाभि पर रखी जाती है। शास्त्रों के अनुसार, दीपक रखने से घर में समृद्धि, शांति, और धन की प्राप्ति होती है। दीपक के माध्यम से भगवान को ऊर्जा और शक्ति प्रदान की जाती है, जो भक्तों को सकारात्मक ऊर्जा देती है।
अन्नकूट का महत्व
गोवर्धन पूजा के दौरान अन्नकूट का आयोजन भी होता है। इस दिन विभिन्न प्रकार के भोजन बनाकर भगवान कृष्ण को अर्पित किए जाते हैं। भक्तजन इसे अन्नकूट महोत्सव कहते हैं, जिसमें सब्जियों, मिठाइयों, और अनाजों का प्रयोग होता है। इस आयोजन में भोजन को अधिक मात्रा में बनाकर गोवर्धन पर्वत के रूप में सजाया जाता है और फिर भगवान को भोग लगाया जाता है। यह परंपरा प्राकृतिक संसाधनों का सम्मान करने और अन्न की महत्ता को समझने का संदेश देती है।
गोवर्धन पूजा से प्राप्त होने वाले लाभ
गोवर्धन पूजा का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्त्व अत्यधिक है। इस पूजा से भक्तजन को कई लाभ मिलते हैं:
- धन-धान्य में वृद्धि: माना जाता है कि गोवर्धन पूजा से घर में धन-धान्य और समृद्धि का वास होता है। परिवार में किसी भी प्रकार की कमी नहीं होती और बरकत बनी रहती है।
- सुख-शांति का वास: गोवर्धन पूजा में गिरिराज जी की नाभि पर दीपक रखने से परिवार में सुख-शांति और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
- भक्तिभाव और प्रकृति प्रेम: यह पूजा भगवान कृष्ण के प्रति भक्तिभाव को बढ़ाती है और लोगों को प्रकृति के प्रति सम्मान की भावना सिखाती है।
- सामूहिकता का संदेश: अन्नकूट महोत्सव सामूहिकता का प्रतीक है, जिसमें परिवार और समाज के लोग मिलकर प्रसाद ग्रहण करते हैं और उत्सव मनाते हैं।
संक्षेप में
गोवर्धन पूजा भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म में एक महत्वपूर्ण पर्व है, जो हमें भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं और उनके द्वारा दी गई शिक्षाओं का स्मरण कराता है। इंद्र के अहंकार का नाश करने और ब्रजवासियों की रक्षा करने के लिए भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत उठाया था, जिससे हम प्रकृति के प्रति सम्मान, संवेदनशीलता और संरक्षण का संदेश प्राप्त करते हैं। गोवर्धन पूजा में गिरिराज जी की नाभि पर दीपक रखना, अन्नकूट का आयोजन और भक्तिभाव का प्रदर्शन मुख्य अंग हैं, जो हमें अपने पारंपरिक मूल्यों से जोड़े रखते हैं।
इस प्रकार, गोवर्धन पूजा न केवल धार्मिक आस्था का पर्व है, बल्कि प्रकृति के साथ सामंजस्य और समाज में सामूहिकता को प्रोत्साहित करने का माध्यम भी है।