September 8, 2024 12:01 pm

NAVRATRI 2024: आज चैत्र नवरात्रि के तीसरे दिन माँ चंद्रघंटा की पूजा से नष्ट होंगी आसुरी शक्तियां! जानें इसका महात्म्य, मंत्र, मुहूर्त, पूजा विधि और क्या है शुभ रंग!

चैत्र नवरात्रि के तीसरे दिन मां दुर्गा के तीसरे स्वरूप चंद्रघंटा की पूजा का विधान है. देवी भागवत पुराण के अनुसार, मां दुर्गा का यह स्वरूप परम शांतिदायक और कल्याणकारी है. इनके मस्तक पर घण्टे के आकार का अर्धचंद्र है, इसी वजह से माँ का नाम चंद्रघण्टा पड़ा. मां दुर्गा की यह शक्ति तृतीय चक्र पर विराज कर ब्रह्माण्ड से दसों प्राणों एवं दिशाओं को संतुलित करती है. माँ चंद्रघंटा के अनुष्ठान से भक्त समस्त सांसारिक कष्टों से छूटकर परमानंद को प्राप्त होते हैं. आइये जानें माँ चंद्रघंटा के संदर्भ में विस्तार से…..

कब और कैसे बनीं माँ दुर्गा देवी चंद्रघंटा?

मां दुर्गा का पहला शैलपुत्री और दूसरा ब्रह्मचारिणी स्वरूप भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कड़ी तपस्या का स्वरूप था, लेकिन वह आदिशक्ति के रूप में प्रकट होती हैं और चंद्रघंटा बन जाती हैं. देवी पार्वती के जीवन में तीसरी सबसे बड़ी घटना के रूप में उन्हें प्रिय वाहन बाघ प्राप्त होता है. इसलिए माँ चंद्रघंटा बाघ पर सवार होकर भक्तों को अभय प्रदान करती हैं. चूंकि बाघ का रंग भूरा है, इसलिए अगर भक्त इस दिन भूरे रंग का परिधान पहनकर पूजा करें तो माँ दुर्गा भक्तों की हर मनोकामनाएं पूरी करती हैं.

क्या है माँ चंद्रघंटा का स्वरूप?

माँ दुर्गा के तीसरे स्वरूप माँ चंद्रघंटा के मस्तक पर घंटे के आकार का अर्ध चंद्रमा विराजमान है, इसलिए इनका नाम चंद्रघंटा पड़ा. माँ चंद्रघंटा की दमकती काया स्वर्ण सरीखा चमकीला है. इनकी दस भुजाएं हैं, जिनमें क्रमशः कमल, धनुष, बाण, खड्ग, कमंडल, तलवार, त्रिशूल और गदा जैसे अस्त्र-शस्त्र सुशोभित होते हैं. कंठ में श्वेत पुष्प की माला और सिर पर हीरा-पन्ना जड़ित मुकुट धारण किये हुए माँ चंद्रघंटा सदा युद्ध की मुद्रा में दिखती हैं. देवी पुराण के अनुसार माँ चंद्रघंटा तंत्र साधना में मणिपुर चक्र को नियंत्रित करती हैं.

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माँ चंद्रघंटा की पूजा-उपासना

चैत्र नवरात्रि के तीसरे दिन सूर्योदय में उठकर स्नानादि से निवृत हो मां चंद्रघंटा का स्मरण करें. माता का ध्यान करते हुए धूप एवं घी के पांच दीपक प्रज्वलित करें. तथा निम्न मंत्र का जाप करते हुए पूजा जारी रखें.

पिंडजप्रवरारूढ़ा, चंडकोपास्त्रकैर्युता

प्रसादं तनुते मह्यं, चंद्रघंटेति विश्रुता

कलश को पुष्प अर्पित करें. अब माँ चंद्रघंटा को सफेद कमल या पीले गुलाब के फूल अर्पित करें. अब रोली, सिंदूर, अक्षत, सुपारी, पीला चंदन आदि अर्पित करें. अब माँ चंद्रघंटा को उनका पसंदीदा भोग केसर की खीर, दूध से बनी मिठाई एवं फल चढ़ाएं. अब माँ दुर्गा की आरती उतारें. आरती के दौरान पूरे घर में शंख और घंटा बजाएं, इससे घर की नकारात्मक शक्तियां नष्ट होती है, अंत में सभी को प्रसाद वितरित करें. इसके बाद शाम के समय एक बार पुनः माँ दुर्गा की पूजा एवं आरती उतारें.

चंद्रघंटा की पूजा के क्या लाभ हैं?

चैत्र नवरात्रि के तीसरे दिन माँ चंद्रघंटा की विधि-विधान से पूजा-वंदना तथा शंख, घंटा, घड़ियाल बजाने से जो ध्वनि तरंगे स्फुटित होती हैं, उससे घर में व्याप्त नकारात्मक अथवा आसुरी शक्तियां नष्ट होती हैं. इस कंपन से अग्नाशय और पाचक तंत्र सुचारु होता है, मधुमेह और रक्तचाप भी नियंत्रित रहता है. नाभि चक्र मजबूत होती है. जातक ऊर्जावान महसूस करता है, उसका मनोबल मजबूत होता है. माँ चंद्रघंटा की पूजा-अनुष्ठान में दूध का प्रयोग घर-परिवार के लिए कल्याणकारी साबित होता है.


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