NARAK CHATURDASHI 2023: नरक चतुर्दशी पर यम देव के लिए दीपक जलाने का क्या हैं विधान …….. क्यों होती है यमराज की पूजा

सनातन धर्म में नरक चतुर्दशी का बेहद ही खास महत्व है। यह पर्व हर साल कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। यानी दिवाली के ठीक एक दिन पहले। इस दिन को लोग छोटी दिवाली, रूप चौदस, नरक चौदस और रूप चतुर्दशी के नाम से भी जानते हैं। यह विशेष दिन मृत्यु के देवता यमराज की पूजा के लिए समर्पित है।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन शाम के समय यम देव के लिए दीपक जलाने का विधान है। ऐसा करने से अकाल मृत्यु से मुक्ति और स्वास्थ्य सुरक्षा का वरदान मिलता है।

नरक चतुर्दशी महत्व

नरक चतुर्दशी के दिन मृत्यु के देवता यमराज की पूजा करने की परंपरा है। धार्मिक कथाओं और मान्यताओं के अनुसार, माना जाता है कि इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर का वध किया था, इसलिए इसे नरक चतुर्दशी कहा जाता है। नरक चतुर्दशी के दिन यमदेव के लिए दीया जलाना एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान माना गया है।

ऐसा कहा जाता है कि इस दिन अपना घर भूलकर भी खाली नहीं छोड़ना चाहिए और घर की दक्षिण दिशा में सरसों के तेल का दीपक जलाना चाहिए। ऐसा करने से व्यक्ति को यमपाश से मुक्ति का सुख प्राप्त होता है। साथ ही आपके घर पर कभी यम देव की बुरी दृष्टि नहीं पड़ती है।

शाम को दीपक जलाने से मिलती है नर्क से मुक्ति


ज्योतिषाचार्य बताते हैं कि नरक चतुर्दशी पर शाम की पूजा का विधान है. नरक चतुर्दशी पर शाम को यह दीपक जलाने से नरक से मुक्ति प्राप्त होती है. कहा जाता है कि इस दिन नाले या किसी कूड़े के ढेर के पास भी दीपक जलाने से व्यक्ति को नरक नहीं भोगना पड़ता है. इस दिन सच्ची श्रद्धा से यमराज की पूजा करने पर नरक से मुक्ति पा सकते हैं.

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नरक चतुर्दशी पर शाम के समय घरों में दिए जलाए जाते हैं और यमराज की पूजा की जाती है. उन्होंने बताया कि आटे का चौमुखी दीपक जलाकर उसमें सरसों का तेल डालने और शाम के वक्त घर के सबसे बुजुर्ग व्यक्ति के द्वारा दीपक को जलाना चाहिए.

नरक चतुर्दशी पूजा विधि

सुबह उठकर पवित्र स्नान करें और साफ कपड़े पहनें।
इस शुभ दिन पर यमराज, श्री कृष्ण, काली माता, हनुमान जी की विशेष पूजा की जाती है।
घर के ईशान कोण अगर पूजा की जाए, तो वो बेहद शुभ माना गया है।
अपने आराध्य के समक्ष धूप दीप जलाएं, कुमकुम का तिलक लगाएं और उनके मंत्रों का जाप करें।
भोग अर्पित करें।

अंत में आरती से पूजा का समापन करें।

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