PROBA-3 MISSION: इसरो के रॉकेट से यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी का सूर्य दूरबीन दिसंबर में होगा लॉन्च…………….सूर्य के अध्ययन में मदद की उम्मीद

यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ESA) ने अपने महत्वाकांक्षी सूर्य अध्ययन मिशन प्रोबा-3 के लॉन्च के लिए भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के साथ हाथ मिलाया है। इस मिशन का उद्देश्य सूर्य के बाहरी वातावरण, यानी कोरोना, का बारीकी से अध्ययन करना है। इसके तहत, ESA ने दो उपग्रहों को लॉन्च के लिए भारत भेजा है, जिन्हें इसरो के विश्वसनीय PSLV-XL रॉकेट द्वारा 60,000 किलोमीटर की ऊंचाई पर कक्षा में स्थापित किया जाएगा। लॉन्च की संभावित तारीख 4 दिसंबर है, हालांकि इसे 24 दिसंबर तक भी लॉन्च किया जा सकता है।
सूर्य के अध्ययन का अनोखा तरीका: प्रोबा-3 मिशन की खासियत
प्रोबा-3 मिशन में दो उपग्रह एक दूसरे के साथ मिलकर कार्य करेंगे। ये दोनों उपग्रह अंतरिक्ष में एक सटीक रेखा में यात्रा करेंगे, ताकि सूर्य की रोशनी को अवरुद्ध कर, उसकी परिधि में स्थित कोरोना को स्पष्ट रूप से देखा जा सके। एक उपग्रह सूर्य की सीधी रोशनी को ढकेगा, जबकि दूसरा उपग्रह इस छाया में से गुजरते हुए सूर्य के बाहरी वातावरण का गहन अध्ययन करेगा। इस तकनीक से सूर्य के कोरोना की तस्वीरें बेहद साफ और विस्तृत होंगी, जिससे उसकी संरचना और गतिविधियों के बारे में नई जानकारी मिलने की उम्मीद है।
प्रोबा-3 की अद्वितीय डिजाइन और इसकी चुनौतियां
इस मिशन की सबसे खास बात यह है कि यह सूर्य के अध्ययन के लिए पहली बार एक नए प्रकार की कॉन्फ़िगरेशन का उपयोग करेगा। दोनों उपग्रहों को 144 मीटर की दूरी पर एक दूसरे के साथ तालमेल बनाते हुए अंतरिक्ष में काम करना होगा, जो तकनीकी रूप से काफी चुनौतीपूर्ण है। इसे सफलतापूर्वक पूरा करने के लिए प्रोबा-3 उपग्रहों में अत्याधुनिक सेंसर और नेविगेशन सिस्टम का उपयोग किया गया है, ताकि वे मिलकर सूर्य को सही कोण और दूरी से अवरुद्ध कर सकें। इस प्रक्रिया को “ऑकल्टरिंग” कहा जाता है और इसे पहली बार इतनी ऊंचाई पर इतने सटीकता के साथ किया जा रहा है।
इसरो के PSLV-XL का चयन क्यों?
ESA का प्रोबा-3 मिशन अत्यधिक संवेदनशील और जटिल होने के साथ-साथ सटीकता की भी मांग करता है। इसे सही ऊंचाई पर पहुंचाने के लिए यूरोप का एरियन-6 रॉकेट उपयुक्त है, लेकिन वह काफी महंगा है। वहीं, इसरो का PSLV-XL रॉकेट न केवल किफायती है, बल्कि यह 550 किलोग्राम के दोनों उपग्रहों को उच्च कक्षा में स्थापित करने में सक्षम भी है। इसलिए ESA ने PSLV-XL का चयन किया है, ताकि इस महत्वपूर्ण मिशन को सफलतापूर्वक और आर्थिक रूप से अंजाम दिया जा सके।
प्रोबा-3 के पीछे भारतीय अनुभव
यह ESA का पहला सूर्य अध्ययन मिशन है जिसे इसरो लॉन्च करेगा। लेकिन यह पहली बार नहीं है जब इसरो ने प्रोबा उपग्रह श्रृंखला का प्रक्षेपण किया है। 2001 में, इसरो ने प्रोबा-1 उपग्रह को लॉन्च किया था, जो एक पृथ्वी-अवलोकन मिशन था। प्रोबा-3 के लिए फिर से इसरो का चयन करना दर्शाता है कि भारतीय स्पेस एजेंसी का अनुभव और तकनीकी विशेषज्ञता अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्य और सराहनीय है।
लॉन्च की चुनौतियाँ और संभावनाएं
प्रोबा-3 मिशन के तहत दो उपग्रहों के बीच अत्यधिक सटीकता की आवश्यकता है, जो कि अंतरिक्ष में आदान-प्रदान करने वाली जानकारी पर निर्भर करती है। इसरो और ESA के वैज्ञानिकों ने इसे ध्यान में रखते हुए मिशन के विभिन्न पहलुओं पर महीनों तक परिश्रम किया है। ESA ने अपने मिशन को सफलतापूर्वक भारत भेजने के लिए अलग-अलग सुविधाओं और बैटरियों की व्यवस्था की है। एक चुनौतिपूर्ण पहलू यह है कि अंतरिक्ष में कक्षा से सूर्य की सीधी किरणों को ब्लॉक करने का यह प्रयास पहला है, जो न केवल जटिल है, बल्कि काफी जोखिम भरा भी है।
सूर्य के गहन अध्ययन से मिलने वाली संभावित जानकारी
सूर्य का कोरोना, उसकी सतह से दूर स्थित एक बाहरी परत है, जिसका तापमान सूर्य की सतह से लाखों डिग्री ज्यादा होता है। इसके पीछे के कारण और इसके व्यवहार को समझने के लिए वैज्ञानिक लंबे समय से प्रयासरत हैं। प्रोबा-3 मिशन से सूर्य के इस हिस्से का बारीकी से अध्ययन संभव होगा। इस डेटा से सूर्य में होने वाली विभिन्न गतिविधियों और उसकी चुंबकीय संरचना को समझने में मदद मिलेगी। इसके अतिरिक्त, प्रोबा-3 से प्राप्त जानकारी से सूर्य के विस्फोटक घटनाओं, जैसे सौर तूफान और सौर ज्वालाओं के बारे में नई और उपयोगी जानकारियाँ प्राप्त हो सकती हैं।
अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष सहयोग में नया अध्याय
प्रोबा-3 मिशन ESA और इसरो के बीच सहयोग का एक और उदाहरण है, जो दर्शाता है कि दोनों संगठन मिलकर अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में महत्वपूर्ण प्रगति कर सकते हैं। इस मिशन से प्राप्त डेटा अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक समुदाय के साथ साझा किया जाएगा, ताकि दुनिया भर के शोधकर्ता सूर्य के व्यवहार का अध्ययन कर सकें। यह मिशन भारत और यूरोप के अंतरिक्ष विज्ञान के संबंधों को भी मजबूत करेगा।
निष्कर्ष: भविष्य के अंतरिक्ष मिशनों के लिए प्रेरणा
प्रोबा-3 मिशन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वैज्ञानिक अनुसंधान और अंतरिक्ष सहयोग का प्रतीक है। इस मिशन के सफल होने पर, यह अंतरिक्ष विज्ञान और तकनीक में नए मील के पत्थर स्थापित करेगा, खासकर सूर्य और उसके बाहरी वातावरण के अध्ययन में। यह मिशन इसरो और ESA दोनों के लिए एक बड़ा अवसर है, जो अन्य भविष्य के अनुसंधान मिशनों के लिए प्रेरणा का काम करेगा।