SURGUJA: स्वतंत्रता दिवस पर विशेष……………… यहाँ पढ़ें भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में सरगुजा अंचल का योगदान
हर घर तिरंगा अभियान तिरंगे की शान बन चुका है। आज देश हर घर तिरंगा अभियान के सााथ आजादी का उत्सव मना रहा है। आज हम स्वतेत्रता दिवस की 77 मी वर्षगांठ मनाने जा रहे हैं। इस स्वर्णिम दिवस को पाने के लिए हमारे देश के अनेक वीर शहीदों ने हंसते हंसते कुर्बानियां दी हैं। आजादी की लड़ाई में सरगुजा अंचल के वीर सपूतों ने भी कदम से कदम मिलाकर देश को आजाद कराने में अपना सहयोग दिया है।
स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों पर शोध कार्य कर रहे जिला पुरातत्व संघ सूरजपुर के सदस्य राज्यपाल पुरस्कृत व्याख्याता अजय कुमार चतुर्वेदी ने उत्तरी छत्तीसगढ़ के सरगुजा संभाग के छः जिलों से 40 स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की खोज कर, भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में उनके योगदान को लिख कर सरगुजा के इतिहास को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पटल पर स्थान दिलाया है। सरगुजा अंचल के 40 स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के नाम प्रकाश में आये हैं। जिन में सरगुजा जिले से 16, कोरिया जिले से 01 मनेन्द्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर जिले से 10, बलरामपुर – रामानुजगंज जिले से 03 और जशपुर जिले से 08 स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के नाम शामिल हैं। सरगुजा अंचल में गहन शोध करने पर और भी कई नाम प्रकाश में आ सकते हैं। सरगुजा गजेटियर 1989 में 26 स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के नाम दर्ज हैं। किन्तु आज भी अनेक गुमनाम हैं।
शहीद बाबू परमानंद सरगुजा अंचल के इकलौता शहीद
सरगुजा रियासत के सूरजपुर के एक वीर सपूत बाबू परमानंद जी थे। जिन्होंने देश की खातिर महज 18 वर्ष की आयु में ही हंसते-हंसते जेल में प्राण न्यौछावर कर दिये थे। बाबू परमानंद सरगुजा अंचल के इकलौता शहीद है। आजादी के पूर्व वंदे मातरम , वैदिक धर्म की जय का नारा लगाना और वंदे मातरम गीत गाना अपराध माना जाता था। ऐसे राष्ट्र प्रेमियों को जेल में डाल कर कड़ी यातनाएं दी जाती थी। बाबू परमानंद जी को भी इसी जुर्म में जेल हुई थी। आपने जेल में भी अदम्य साहस का परिचय दिया। आप देश भक्ति और राष्ट्र प्रेम को अपनाकर जेल में भी वंदे मातरम और वैदिक धर्म की जय उद्घोष लगातार करते रहे । आपने जेल अधिकारियों द्वारा नारे ना लगाने की चेतावनी को भी न मानते हुए अपने सिद्धांतों के साथ कभी भी समझौता नहीं किया। आपको इसी अपराध की कीमत देश के खातिर कुर्बानी देकर चुकानी पड़ी।
भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में सरगुजा अंचल का योदान
अजय चतुर्वेदी ने बताया कि भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का तृतीय चरण या गांधी युग सन् 1919 से सन् 1947 तक माना जाता है। यह भारत की आजादी का अंतिम निर्णायक आंदोलन था। इस दौरान सरगुजा अंचल के सेनानियों ने नमक सत्याग्रह ,सविनय अवज्ञा आंदोलन, व्यक्तिगत सत्याग्रह, किसान आंदोलन, विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार, जंगल सत्याग्रह, हैदराबाद आर्यसमाज अनदोलन, भारत छोड़ो आन्दोलन और आजाद हिंद फौज में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
नमक सत्याग्रह और सविनय अवज्ञा आंदोलन में योगदान
नमक सत्याग्रह और सविनय अवज्ञा आंदोलन में सरगुजा अंचल तेजो मुर्तुला वेंकट राव, शिवदास राम, भास्कर नारायण माचवे, आनंद प्रसाद हलधर और धीरेंद्रनाथ शर्मा का उल्लेखनीय योगदान रहा। इन्होंने अंग्रेज सकार का विरोध करना, पुलिस बल के सदस्यों में विद्रोह की भावना भड़काना, पुलिस बल के सदस्यों के अपनी सेवााएं रोकने के लिए प्रेरित करना, अनुशासन भंग करने के लिए प्रेरित किया इसलिए गिरफ्तार कर कड़ी कैद की सजा दी गई।
व्यक्तिगत सत्याग्रह में योगदान
व्यक्तिगत सत्याग्रह में सरगुजा अंचल के मेवाराम और ज्ञानी दर्शन सिंह ने स्मरणीय योगदान दिया है। मेवाराम को व्यक्तिगत सत्याग्रह में भाग लेने के कारण दिनांक 17 अप्रैल 1941 को छह माह की कठोर सजा हुई थी। ज्ञानी दर्शन सिंह को व्यक्तिगत सत्याग्रह में भाग लेने के कारण 1 वर्ष का कारावास हुआ था।
किसान आंदोलन में योगदान
रघुनंदन तिवारी “आजाद“ ने 15 जनवरी 1937 में किसान आंदोलन में भाग लिया इसलिए इसी जुर्म में गिरफ्तार कर मई 1937 में 3 माह की कठोर सजा दी गयी।
विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार में योगदान
राजदेव पांडे को सन् 1931 ई0 में विदेशी वस्तु बहिष्कार तथा शराबबंदी आंदोलन में भाग लेने के कारण 23 फरवरी से 9 मार्च 1931 तक गाजीपुर उत्तर प्रदेश में कारावास हुआ था।
जंगल सत्याग्रह मे योगदान
जंगल सत्याग्रह मे सरगुजा अंचल के नित्य गोपाल राय और धरम सिंह का महतवपूर्ण योगदान रहा। नित्य गोपाल राय को सन् 1930 ईस्वी में जंगल सत्याग्रह में भाग लेने की जुर्म में 6 माह की कठोर कारावास हुई थी। धर्म सिंह को जंगल सत्याग्रह में भाग लेने के कारण 28 दिन का कारावास हुआ था।
हैदराबाद आर्य समाज आन्दोलन मे योगदान
अमर शहीद बाबू परमानंद ने हिंदू महा सभा की आह्वान पर हरिद्वार से सोलापुर (महराष्ट्र) आकर सत्याग्रही समिति में पूरी ऊर्जा और उत्साह के साथ शामिल हो गए। आप देश भक्ति और राष्ट्र प्रेम को अपनाकर जेल जीवन में भी वंदे मातरम और वैदिक धर्म की जय उद्घोष लगातार करते रहे। आपको इसी अपराध की कीमत देश के खातिर कुर्बानी देकर चुकानी पड़ी। जेल कर्मचारियों ने आदेश उल्लंघन करने के अपराध में बड़ी निर्ममता से कोड़े बरसाते हुए इतनी बेरहमी से पीटा कि 1 अप्रैल 1939 को चंचलागुड़ी जेल में ही आप देश के खातिर शहीद हो गए। आपने 18 वर्ष की अल्प आयु में बलिदान देकर सरगुजा, छत्तीसगढ़ की धरती को धन्य कर दिया ।
भारत छोड़ो आन्दोलन में योगदान
भारत छोड़ो आन्दोलन में सरगुजा अंचल के महली भगत, अनिल कुमार चटर्जी, मौजी लाल जैन, शिव कुमार सिंह, जगदीश प्रसाद नामदेव, चंदिकेश दत्त शर्मा, अमृतराव घाटगे, प्राण शंकर मिश्र, पन्नालाल जैन, भास्कर नारायण माचवे और घुरा साव ने महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इन्होने ब्रिटिश शासन का विरोध, विदेशी कपड़ों का जलाना, टेलीफोन तार काटना, पूल तोड़ना, रेल पटरियां उखाड़ना, सरकारी स्कूलों का बहिष्कार करना और ब्रिटिश शासन का विरोध करने के साथ ही ग्रामीणों को आजादी के लिए प्रेरित करने का महत्वपूर्ण कार्य किया। ब्रिटिश हुकमम्मत ने इन देश भक्तों को जेल में बंद कर कड़ी यातनाएं दी।
आजाद हिंद फौज में सरगुजा अंचल का योगदान
आजाद हिंद फौज से जूड़कर सरगुजा अंचल का उमेद सिंह रावत, नैन सिंह ठाकुर और श्याम सिंह गिल ने देश को आजादी कराने में चीर स्मरणीय योगदान दिया है। इन्हों ने ब्रिटिश हुकमम्मत के खिलाफ करने की जुर्म में जेल की कड़ी यातनाएं सही।
आजादी की लड़ाई में जनजाति समुदाय का योगदान
आजादी की लड़ाई में सभी जाति, धर्म, समुदाय के लोग देश को आजाद कराने में अविस्मरणीय योगदान दिये हैं। सरगुजा आदिवासी बहुल अंचल है, निश्चित रूप से यहां की जनजाति समुदाय के लोग भी अपने देश की खातिर आजादी की लड़ाई में कुर्बानियां दी होंगी। सरगुजा गजेटियर में सरगुजा अंचल से जनजाति समुदाय के 3 स्वतंत्र संग्राम सेनानियों के नाम मिलते हैं। जिसमें कुसमी के स्वर्गीय श्री महली भगत, स्वर्गीय श्री राजनाथ भगत और गांधीनगर अंबिकापुर के स्वर्गीय श्री माझी राम गोड का नाम शामिल है।
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पर पुस्तक प्रकाशन और आकाशवाणी अंबिकापुर से जीवन गाथा का प्रसाण हो चुका है
अजय कुमार चतुर्वेदी द्वारा लिखित पुस्तक “सरगुजा अंचल के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी“ का प्रकाशन भी हो चुका है। स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के जीवनी पर आधारित पुस्तक का प्रकाशन सहकारी विपणन विकास संघ (ट्राइफेड) जनजाति कार्य मंत्रालय भारत सरकार के सहयोग से किया गया है। स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के जीवन गाथा का प्रसाण आकाशवाणी अंबिकापुर से किया जा चुका है।
शोधकर्ता अजय चतुर्वेदी के द्वारा सरगुजा की लोक संस्कृति, इतिहास, पुरातत्व, पर्यटन, लोक कला और बोलियों को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय राष्ट्रीय शोध संगोष्ठियों में प्रस्तुत किया जा जुका है। इन्होने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में सरगुजा अंचल के योगदान को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पटल पर प्रस्तुत कर सरगुजा अंचल को गौरान्वित किया है। अजय कुमार चतुर्वेदी ने बताया कि मैंने सरगुजा अंचल के ज्ञात,अल्प ज्ञात तथा अज्ञात स्वतंत्रता सेनानियों को ढूंढा और उनके परिवार वालों से मिलकर उनकी संपूर्ण जीवन गाथा लिखकर इतिहास के पन्नों में लाने का प्रयास कर रहा हूं। मुझे आशा है कि इस पुनीत कार्य में सभी वर्ग के लोग सहयोग करेंगे और ऐसे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी जो देश की खातिर शहीद हुए उनकी जानकारियों को सांझा करेंगे ताकि सरगुजा अंचल के इतिहास को स्वर्णिम बनाया सके।