SURGUJA: जनजातीय अंचल में सोहराई तिहार के रूप में की जाती है लक्षमी पूजा……………गौ माता को मानते हैं देवी लक्ष्मी का प्रतीक

भारत में दीपावली का त्योहार अन्धकार पर प्रकाश की विजय को दर्शाने वाला सबसे महत्वपूर्ण पर्व है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, यह पर्व भगवान राम के अयोध्या लौटने की स्मृति में मनाया जाता है। हर क्षेत्र में दीपावली का अपना एक खास महत्व होता है। अजय कुमार चतुर्वेदी (राज्यपाल पुरस्कृत व्याख्याता) और जिला पुरातत्व संघ सूरजपुर के सदस्य ने अपने संकलित लेख में लिखा है कि, सरगुजा और अन्य जनजातीय क्षेत्रों में इस त्योहार का खास स्वरूप “सोहराई तिहार” के रूप में मनाया जाता है, जो देवउठनी एकादशी के दिन आता है। यह पर्व स्थानीय संस्कृति और मान्यताओं का अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत करता है।

(राज्यपाल पुरस्कृत व्याख्याता)
सदस्य, जिला पुरातत्व संघ सूरजपुर
सरगुजा अंचल में सोहराई तिहार के रूप में लक्ष्मी पूजा
सरगुजा के जनजातीय समाज में दीपावली के ग्यारह दिन बाद देवउठनी एकादशी को सोहराई पर्व के रूप में लक्ष्मी पूजा की जाती है। इस दिन लोग साफ-सफाई कर गौ माता की लक्ष्मी के रूप में पूजा करते हैं। मुख्य रूप से, गाय के खुरों के निशान घर तक लाकर इसे लक्ष्मी के आगमन का प्रतीक माना जाता है। इस परंपरा में गौ माता को लक्ष्मी का दर्जा दिया जाता है, जिससे उनके प्रति गहरा सम्मान प्रकट होता है।
डार खेल: सोहराई पर्व का एक अहम हिस्सा
देवउठनी एकादशी के दिन जनजातीय समाज के लोग “डार” खेलते हैं, जिसमें करमा नृत्य करते हुए पूरी रात उत्सव मनाते हैं। सोहराई डार के अलावा करमा डार, तीजा डार, जीवितिया डार, दसांई डार जैसे अन्य पर्वों में भी यह परंपरा निभाई जाती है। सरगुजा के जनजातीय समाज में डार खेलना एक समृद्ध सांस्कृतिक परंपरा का हिस्सा है, जिसमें सभी लोग मिलकर नृत्य और गीतों से उत्सव को जीवंत बनाते हैं।
गौ माता को लक्ष्मी का प्रतीक मानते हैं
सरगुजा के जनजातीय समाज में गौ माता को लक्ष्मी का प्रतीक मानकर विशेष पूजा की जाती है। देवउठनी एकादशी के दिन लोग गाय के पदचिह्न घर तक बनाते हैं और लक्ष्मी के आगमन का निमंत्रण देते हैं। इस दिन चावल की मिठाई, लाल कंद, कुम्हड़ा आदि चढ़ाकर पूजा की जाती है। उपवास के साथ फलाहार ग्रहण कर मां लक्ष्मी की उपासना की जाती है।
देवउठनी एकादशी: शुभ कार्यों की शुरुआत का दिन
जनजातीय मान्यता के अनुसार, आषाढ़ शुक्ल एकादशी को भगवान विष्णु चार माह के लिए शयन करते हैं और कार्तिक शुक्ल एकादशी को जागते हैं। इसलिए देवउठनी एकादशी को शुभ कार्यों की शुरुआत का दिन माना जाता है। इसी दिन सरगुजा अंचल में सोहराई पर्व को दिवाली के रूप में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।
कोठा तिहार: सोहराई के साथ विशेष पूजा
चतुर्वेदी जी के अनुसार, सोहराई पर्व के दौरान “कोठा तिहार” नामक एक विशेष पूजा की जाती है। इस दिन ग्रामीण लोग अपने गौ माता का पैर धोकर फूल माला अर्पित कर लक्ष्मी के रूप में पूजा करते हैं। धीरे-धीरे आधुनिक दीपावली के दिन भी इस क्षेत्र के लोग अपने घरों में दीये जलाकर दिवाली मनाने लगे हैं, परन्तु उनकी असली दिवाली देवउठनी एकादशी को होती है।