AMBIKAPUR: के आर टेक्निकल कॉलेज में भारत रत्न डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम की पुण्यतिथि में कार्यक्रम का किया गया आयोजन…………… छात्र-छात्राओं को डॉ. कलाम की जीवन प्रसंग से किया गया प्रेरित
के आर टेक्निकल कॉलेज अंबिकापुर के सभागार में आज आईक्यूएसी और साइंस क्लब के संयुक्त तत्वाधान में भारत के पूर्व राष्ट्रपति, मिसाइल मैन, भारत रत्न डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम की पुण्यतिथि में एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में महाविद्यालय की डायरेक्टर श्रीमती रीनू जैन,आइक्यूएसी और नैक समन्वयक मोहम्मद अफरोज अंसारी, राष्ट्रीय सेवा योजना के कार्यक्रम अधिकारी श्री विनितेश गुप्त, हिंदी विभाग के सहायक प्राध्यापक श्री विनोद चौधरी, सभी विभागों के विभाग प्रमुख, सहायक प्राध्यापक, कार्यालय स्टाफ और छात्र-छात्राएं उपस्थित थे। सर्वप्रथम डॉ. कलाम के छायाचित्र के सामने पुष्प अर्पित कर तथा धूप जलाकर कार्यक्रम की शुरूआत किया गया।
सबसे पहले महाविद्यालय की डायरेक्टर श्रीमती रीनू जैन ने सभी के समक्ष डॉक्टर कलाम की जीवनी पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए बताया कि वे भारत के पूर्व राष्ट्रपति, महान वैज्ञानिक,मां भारती के सच्चे सपूत, मिसाइल मैन और भारत के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से सम्मानित व्यक्ति थे। वे एक ऐसे भारतीय वैज्ञानिक और मिसाइल मैन थे जिन्होंने भारत के मिसाइल और परमाणु हथियार कार्यक्रमों के विकास में अग्रणी भूमिका निभाई थे। 2002 से 2007 तक भारत के राष्ट्रपति भी रहे थे। डॉ कलाम बहुत ही सादगी प्रिय व्यक्ति थे। अनुशासन और दैनिक रूप से पढ़ना उनकी दिनचर्या में शामिल था। अपने गुरु से उन्होंने सीखा था कि यदि आप किसी चीज को पाना चाहते हैं तो आपको तीव्र इच्छा शक्ति रखनी होगी और उसे पाने के लिए की जान लगा देना होगा। आगे उन्होंने बताया कि कलाम साहब पायलट बनना चाहते थे परंतु किसी कारण से पायलट नहीं बन पाए। आगे उन्होंने स्वामी शिवानंद और अब्दुल कलाम के बीच हुई वार्तालाप का वृतांत प्रस्तुत किया। एनडीए की परीक्षा में नवे स्थान पर आए लेकिन आठ लोगों का ही सिलेक्शन हो पाया वह यह सोचकर निराश और हताश हो गए की अब उनका चयन एनडीए में नहीं हो पाएगा। मंदिर में हताश और निराशा बैठे थे कि उनका मुलाकात स्वामी शिवानंद जी से हो गया। स्वामी शिवानंद जी ने श्रीमद् भागवत गीता के 11वे अध्याय का उदाहरण देते हुए कलाम जी को बताया कि तुम्हारा किस्मत में पायलट बनना नहीं लिखा है क्या बनना है यह अभी प्रकट नहीं हुआ है लेकिन यह पूर्व निर्धारित है। इस असफलता को भूल जाओ क्योंकि यह तुम्हें नियत पथ पर ले जाने के लिए जरूरी था। असमंजस और दुख से निकलकर सही उद्देश्य की तलाश करो। उनके मन मस्तिष्क में स्वामी जी की बात का जादू असर दिखाया और कलाम जी ने दिल्ली जाकर सफलता प्राप्त किया और वरिष्ठ वैज्ञानिक सलाहकार के पद पर नियुक्त हो गए। बच्चों कहने का मतलब यह है की परिस्थितियों और असफलता से घबराना नहीं चाहिए अपने परिश्रम और ईमानदारी पर पूरा भरोसा रखना चाहिए। कभी-कभी इच्छा,संकल्प और प्रयत्न के बावजूद भी भाग्य साथ नहीं देता किंतु इससे निराश होने की बजाय आत्मविश्वास के साथ दोगुनी उत्साह के साथ प्रयास करते रहना चाहिए एक दिन सफलता जरूर मिलती है।
अगली कड़ी में महाविद्यालय के राष्ट्रीय सेवा योजना के कार्यक्रम अधिकारी श्री विनितेश गुप्त ने उनके जीवन में ईमानदारी और सेवा जैसे जीवन मूल्यों को उनकी आत्मकथा से उदाहरण देकर बताया कि एक बार राष्ट्रपति भवन में उनके परिजन रहने आए उनका स्वागत उन्होंने बहुत अच्छे से किया परिजन 9 दिन तक राष्ट्र राष्ट्रपति भवन में रहे जिसका खर्च 3.30 लाख रुपए हुआ जिसका बिल उन्होंने अपनी जेब से भरा। आगे उन्होंने बताया कि कहने का मतलब यह है कि उन्होंने देश सेवा के साथ ईमानदारी को भी अपने साथ जीवन पर्यंत बनाए रखा। आगे उन्होंने बताया कि कलाम साहब बच्चों से बहुत प्रेम करते थे और उन्हें सदा विज्ञान का महत्व बताते थे उनका दरवाजा सदा आमजन के लिए खुला रहता था। उनके कार्यकाल में ही राष्ट्रपति भवन में आम जनता को भी घूमने का अधिकार प्राप्त हुआ।
अगली कड़ी में नैक समन्वयक और आइक्यूसी अधिकारी मोहम्मद अफरोज अंसारी ने बताया कि अब्दुल कलाम बचपन से ही परिश्रमी और अनुशासन प्रिय व्यक्ति थे। वे विपरीत परिस्थितियों में भी निरंतर संघर्ष करते रहते थे और कभी हार नहीं मानने की जज्बा उन्हें सफलता की शिखर पर पहुंचाता था। उन्होंने भारत को ऊंचाई पर पहुंचाने के लिए कई सारे पदों पर अपनी सेवाएं दी। एक छोटे से गरीब परिवार से निकलकर अपने अध्ययन और अनुशासन के बल पर मिसाइल मैन, उपग्रह प्रक्षेपण कार्यक्रम,परमाणु कार्यक्रम के जनक और सर्वोच्च सेनापति प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया के पद पर पहुंचे। अपने जीवन के अंत समय तक भी देश सेवा कार्य छात्र-छात्राओं के बीच भूषण और संवाद करते रहे। बच्चों कहने का मतलब यह है कि जो स्वप्न आप देखते हैं उसे पूरा करने में जी जान लगा दीजिए निश्चित रूप से मंजिल आपको एक दिन जरूर मिलेगी।
अगली कड़ी में हिंदी के सहायक प्राध्यापक श्री विनोद चौधरी ने बताया कि अब्दुल कलाम को ऊंचाई पर पहुंचाने में उनके माता-पिता द्वारा दिए गए संस्कार और जीवन मूल्य का विशेष योगदान रहा। उन्होंने अपने पिता से ईमानदारी, श्रम शीलता और अनुशासन का गुण सीखा और अपनी माता से ईश्वर पर विश्वास और देश सेवा का गुण सीखा। इन सारे जीवन मूल्यों को उन्होंने जीवन पर्यंत अपने दिनचर्या में लागू किया जिसका परिणाम यह हुआ कि वह अपने जीवन में निरंतर देश सेवा करते हुए उच्च आदर्श पर अपने आप को प्रतिष्ठित करते चले गए और देश को ऊंचाई पर पहुंचाने में अपना अमूल्य योगदान दिया। जिस समय वह शिक्षा अध्ययन करके निकले थे उनके समकालीन लोगों ने विदेश में जाकर सेवा देने का निर्णय लिया परंतु वे अपने देश हित में निर्णय लेकर डीआरडीओ और इसरो जैसे संस्थान में कार्य कर देश को मिसाइल और परमाणु संपन्न बनाते चले गए। उन्होंने कभी भी अपने निजी स्वार्थ के लिए काम नहीं किया देश सेवा के लिए निरंतर जूझते रहे,लड़ते रहे,संघर्ष करते रहे और आगे बढ़ते रहे। नए-नए कीर्तिमान स्थापित कर देश को गौरवान्वित करते रहे। देश उनके योगदान और जीवन मूल्य को सदा याद करते रहेगा और वे सदा हमारे प्रेरणा स्रोत बने रहेंगे। आगे उन्होंने अपनी स्वरचित मौलिक कविता सफलता के माध्यम से उनकी जीवनी पर प्रकाश डाला।
महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ.रितेश वर्मा ने आईक्यूएसी और साइंस क्लब को इस आयोजन के लिए बधाई दी है और आशा व्यक्त की है की आईक्यूएसी छात्रों के लिए इसी तरह कार्यक्रम का आयोजन करता रहेगा।